महात्मा गाँधी राज्य ग्रामीण विकास संस्थान जबलपुर (म.प्र.)

    ई-समाचार पत्र

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त्रैमासिक - चतुर्थ संस्करण जुलाई,2011
अनुक्रमणिका हमारा संस्थान
  1. नवनियुक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी/विकासखण्ड अधिकारी का आधारभूत प्रशिक्षण
  2. अपनी बात .....
  3. पेसा क्षेत्र मे ग्रामसभा के विशेष अधिकार एवं कार्य
  4. मध्यप्रदेश में ग्रामसभा की बैठकें - प्रावधान, समस्या एवं सुझाव
  5. ग्रामसभा का सशक्तिकरण
  6. बदलती तस्वीर (चित्र कथा)
  7. पंचायतीराज की आधारभूत इकाई : ग्रामसभा
  8. ग्रामसभा की मूल भावना की सफलता हेतु प्रयास
  9. महिला प्रतिनिधियों के प्रशिक्षण का मोड्यूल विकसित करने हेतु कार्यशाला

नवनियुक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी/विकासखण्ड अधिकारी का आधारभूत प्रशिक्षण

संस्थान में म.प्र. लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित नवनियुक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी एवं विकासखण्ड अधिकारियों का प्रशिक्षण 25 मई 2011 से प्रारंभ हुआ। इस प्रशिक्षण में 4 मुख्य कार्यपालन अधिकारी एवं 9 विकासखण्ड अधिकारी प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे है। यह प्रशिक्षण 9 अगस्त 2011 को संपन्न होगा ।

प्रशिक्षण में इन प्रतिभागियों को कार्यालयीन व्यवस्था, प्रबंधन, लेखा प्रक्रिया, तकनीकी ज्ञान, पंचायतराज के साथ ही शासन की विभिन्न योजनाओं


के साथ-साथ मनोवृत्ति विकास संबंधी प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। सैद्धान्तिक प्रशिक्षण दो चरणों में संस्थान एवं वाल्मी भोपाल द्वारा दिए जाने के साथ ही 17 दिवसीय व्यवहारिक प्रशिक्षण भी विभिन्न जनपद पंचायतों में दिया जायेगा, जिसके लिए इन्हें 6 जिलों की जनपद पंचायतों में भेजा जा रहा है, जहाँ पर ये 11 से 27 जुलाई तक व्यवहारिक प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे।

  अनुक्रमणिका  
पेसा क्षेत्र मे ग्रामसभा के विशेष अधिकार एवं कार्य
अपनी बात .....

‘‘पहल’’ का चौथा संस्करण आप तक प्रेषित करने में मुझे हर्ष है। इस संस्करण को हमने ग्रामसभा पर केन्द्रित किया है। ग्राम सभाऐं पंचायतीराज व्यवस्था की धूरी हैं, इनका सशक्त होना स्थानीय स्वःशासन को मजबूत बनाने के लिए अत्यंत आवश्यक है। ग्राम सभाओं में ग्रामीणों की अल्प उपस्थिति चिंतनीय है, जबकि प्रत्येक गांव के विकास की योजना ग्रामसभा को ही तैयार करना चाहिए। यह भी सच है कि ग्रामसभा द्वारा लिए गए निर्णयों पर लंबित कार्यवाही के कारण भी ग्रामीणों की सहभागिता कम होने लगती है। अतः यह आवश्यक है कि हम निर्णयों के क्रियान्वयन में आ रही कठिनाईयों का हल ढूंढकर उसे दूर करने की ओर कदम बढ़ाऐं, तभी ग्राम सभाओं के प्रति आमजनों में विश्वास पैदा हो सकेगा।

इस संस्करण में ‘‘बदलती तस्वीर’’ के अंतर्गत भी हमने ग्रामसभा तथा ग्राम-कोष की अवधारणा को चित्रों के माध्यम से कथानक के रूप में बताने का प्रयास किया है। उम्मीद है पाठकों को यह रूचिकर लगेगा।

पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम (PESA), 1996 के अंतर्गत आने वाली ग्राम सभाओं को सामान्य क्षेत्र की ग्राम सभाओं की तुलना में कुछ विशेषाधिकार भी हैं जिसके संबंध में जागरूकता लाना भी आवश्यक है।

ग्राम स्वराज का गांधी जी का सपना साकार रूप तभी लेगा जब ग्रामसभा एक सशक्त इकाई बनकर उभरेगी। इस ओर हमारा एक-एक कदम महत्वपूर्ण है....

के.के.शुक्ल
संचालक

किसी अनुसूचित क्षेत्र में, ग्रामसभा की धारा 7 के अधीन प्राप्त शक्तियां तथा कृत्यों के अतिरिक्त निम्नलिखित शक्तियों तथा कृत्य भी होगें, अर्थात-

  1. ग्रामसभा को यह अधिकार है कि वह ग्राम पंचायत के किसी भी काम और जिम्मेदारी पर विचार करें तथा उस पर अपने कार्यो की जरूरत के हिसाब से फैसला लें।
  2. ग्रामसभा जो भी फैसला लेगी उसे ग्राम पंचायत को मानना और लागू करना जरूरी है। यहाँ पर यह जरूरी है कि कोई भी फैसला जिसमें पैसा और संसाधन लगते हैं उसे पंचायत तभी लागू कर पाएगी जब पंचायत निधि में उतना पैसा हो।
  3. ग्रामसभा, जनजाति समुदाय (आदिवासी समुदाय) में, आपसी झगडों तथा विवाद निपटाने के परम्परागत सामाजिक तरीकों को भी संरक्षित करेगी।
  4. ग्रामसभा को अपनी सीमा के भीतर आने वाले जल, जंगल, जमीन तथा जमीन पर नियंत्रण करने की ताकत है। अतः ग्रामसभा अपनी स्थानीय परंपरा के अनुसार इन प्राकृतिक संसाधनो की देख-भाल करेगी। प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करते समय या इनसे जुडे किसी भी विवाद का निपटारा करते समय ग्रामसभा यह ध्यान रखेगी कि उसके द्वारा किया गया फैसला संविधान की मूल भावना के अनुकूल हो।
  5. अनुसूचित क्षेत्रों में ग्रामसभा को यह अधिकार है कि वह अपने यहाँ के जनजातीय समुदाय तथा व्यक्तियों की परम्परा, सांस्कृतिक पहचान तथा सामुदायिक साधनों को सुरक्षित रखने के लिए आवष्यक कदम उठाए ताकि इन्हें सुरक्षित रखा जा सकें।
  6. किसी मादक द्रव्य के विक्रय और उपभोग को नियंत्रित अथवा प्रतिबंधित करने की शक्ति।
  7. स्थानीय संसाधनों जैसे ग्राम में उपलब्ध गौण खनिज, मुरम, रेत एवं वनोपज जैसे जंगल से मिलने वाले आंवला, गोंद, बिजी आदि के विक्रय एवं उपयोग पर ग्राम सभा का स्वामित्व होगा।
  8. ग्राम के बाजारों तथा मेलों का जिनमें पशु मेला सम्मिलित है, चाहे वे किसी भी नाम से जाने जाएँ, ग्राम पंचायत के माध्यम से प्रबंध करना।
  9. अनुसूचित जनजातियों को धन उधार देने पर नियंत्रण की शक्ति।
  10. स्थानीय योजनाओं पर, जिनमें जनजातीय उपयोजनाएं सम्मिलित है, तथा ऐसी योजनाओं के लिए स्त्रोतों और व्ययों पर नियंत्रण रखना।




अनुक्रमणिका  
नीलेश राय
(संकाय सदस्य)
मध्यप्रदेश में ग्रामसभा की बैठकें - प्रावधान, समस्या एवं सुझाव

ग्राम सभा को मजबूत बनाने के लिए सुव्यवस्थित और प्रभावी ग्राम सभाऐं जरूरी हैं। ग्राम सभा बैठकों से संबंधित प्रावधान मध्यप्रदेश पंचायतराज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम, 1993 की धारा 6 और मध्यप्रदेश ग्राम सभा (सम्मिलन की प्रक्रिया) नियम, 2001 में दिये गये हैं। बैठक से संबंधित प्रमुख प्रावधान निम्नानुसार हैं।

बैठक से संबंधित प्रावधान :

  1. ग्राम सभा की बैठक कम से कम जनवरी, अप्रैल, जुलाई तथा अक्टूबर माह में आयोजित की जाना चाहिए। इनके अलावा आवश्यकतानुसार अतिरिक्त सभाऐं आयोजित की जा सकती हैं।
  2. ग्राम सभा की बैठक ग्राम सभा मुख्यालय पर होगी।
  3. ग्राम पंचायत का सचिव ग्राम सभा का भी सचिव होगा। सचिव, ग्राम सभा के नियत्रंण में रह कर ग्राम सभा द्वारा सौपें गये कार्यो को करेगा।
  4. जिले के कलेक्टर ग्राम सभाओं के उचित इंतजाम के लिए एक शासकीय अधिकारी या कर्मचारी को निर्देशित करते हैं, जो कि नोडल अधिकारी कहलाये जाते हैं।
  5. नोडल अधिकारियों पर बैठक की कार्यसूची का परिचलन एवं तारीख, समय तथा स्थान की सूचना समय पर तामील किया जाना सुनिश्चित करने और सम्मिलन की कार्यवाहियों का सम्यक् संचालन भी सुनिश्चित करने की जबावदारी होती है।
  6. ग्राम सभा की प्रत्येक बैठक की सूचना, तारीख, समय तथा स्थान और किये जाने वाले कामकाज को विनिर्दिष्ट करते हुये, बैठक की तारीख से कम से कम सात दिन पूर्व दी जावेगी। किसी आपात की दशा में बैठक तीन दिन की पूर्व सूचना देकर बुलाई जा सकती है।
  7. बैठक की सूचना ग्राम सभा क्षेत्र के सहजदृष्य स्थानों पर सूचना की एक प्रति चिपका कर और ग्राम सभा क्षेत्र में डोंडी पिटवाकर घोषणा करते हुये प्रकाशित की जाएगी।
  8. यदि सरपंच या ग्राम सभा के दस प्रतिशत से अधिक सदस्य या पचास सदस्य, जो भी कम हो, ग्राम सभा के विशेष सम्मिलन के लिए लिखित में मांग करते हैं तो सचिव द्वारा मांग पत्र प्राप्त होने के सात दिवस के भीतर विशेष ग्राम सभा आयोजित की जावेगी।
  9. ग्राम सभा की प्रत्येक बैठक के लिए, ग्राम सभा सदस्यों की कुल संख्या के एक दशमांश अथवा पाँच सौ सदस्यों, इनमें से जो भी कम हो, की गणपूर्ति जरूरी है।
  10. सामान्य क्षेत्र के अन्तर्गत ग्राम सभा सम्मिलन की अध्यक्षता सरपंच और उपसरपंच द्वारा की जाती है। दोनों की ही अनुपस्थिति में बैठक में उपस्थित ऐसे पंच द्वारा की जाती है, जिसे ग्राम सभा में अध्यक्षता करने के लिए चुना गया हो।
  11. अनुसूचित क्षेत्र की पंचायत में ग्राम सभा की अध्यक्षता किसी भी पदधारी द्वारा नहीं की जाती है। वहां पर ग्राम सभा द्वारा चुने गये किसी अनुसूचित जनजाति के सदस्य द्वारा अध्यक्षता की जाती है।
  12. ग्राम सभा की बैठक में लिये जाने वाले निर्णय जहां तक संभव हो एक मत से होंगे। एकमतैन न हो सकें तो सामान्य सहमति से निर्णय लिये जावेगें। मत भिन्नता की स्थिति में ऐसा मामला आगामी बैठक में लाया जावेगा। यदि लगातार दो स्थगित बैठकों में एकमत या सामान्य सहमति से निर्णय नहीं लिया जाता है तो ऐसा मामला उपस्थित सदस्यों के बहुमत द्वारा, गुप्त मतदान से निर्णय लिया जावेगा। मत बराबर होने की स्थिति में सम्मिलन की अध्यक्षता करने वाले व्यक्ति का द्वितीय या निर्णायक मत होगा।
  13. कोई व्यक्ति मत देने का हकदार है या नहीं उसका फैसला मतदाता सूची के आधार पर अध्यक्षता करने वाले व्यक्ति द्वारा किया जावेगा।
  14. ग्राम सभा के प्रत्येक सदस्य को, ग्राम सभा के समक्ष रखे जाने वाले अभिलेखों का, ग्राम सभा बैठक के दौरान निरीक्षण करने का अधिकार होगा।
  15. ग्राम सभा की बैठक में उपस्थित होने वाले सदस्यों के नाम उपस्थिति रजिस्टर में दर्ज किये जावेगें।
  16. ग्राम सभा बैठकों का कार्यवृत, कार्यवाहियों के अभिलेख एवं निर्णय एवं उपस्थित सदस्यों की संख्या, कार्यवृत पुस्तक में सचिव द्वारा दर्ज की जावेगी और उसकी पुष्टि अध्यक्ष द्वारा की जाएगी। कार्यवृत, देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी में होगें।

ग्राम सभा की बैठकों से संबंधित समस्याऐं :

  1. शासन द्वारा निर्धारित चार ग्राम सभाओं के अलावा अतिरिक्त ग्राम सभाऐं कम ही आयोजित की जाती है।
  2. ग्राम सभा के सुव्यवस्थित आयोजन हेतु नामांकित नोडल अधिकारी अपने दायित्व को निभाने में असफल रहे हैं। विशेष रूप से एजेण्डा एवं बैठक की सूचना की तामीली ग्राम सभा सदस्यों से करवाने के लिए कोई प्रबंध अभी भी ग्राम पंचायत में किया गया हो ऐसा कम ही दिखाई देता है।
  3. बहुत सी ग्राम सभाओं में सदस्यों की कम उपस्थिति अपने आप में बहुत बड़ा सवाल है। गांव की भलाई के लिए ग्राम सभा का गठन किया गया है लेकिन सभा में सदस्यों की अनुपस्थिति किसी गड़बड़ी की ओर संकेत है।
  4. जिस समय ग्राम सभा का आयोजन किया जा रहा है वह समय ग्राम सभा बुलाने के लिए उपयुक्त है अथवा नहीं इस पर विचार करने की जरूरत है।

  1. ग्राम सभा के प्रत्येक सदस्य को, ग्राम सभा के समक्ष रखे जाने वाले अभिलेखों का, ग्राम सभा बैठक के दौरान निरीक्षण करने का अधिकार दिया गया है किन्तु अभिलेख अपूर्ण रहने के कारण बहुत से सचिव ग्राम सभा में रखने से डरते हैं।
  2. ग्राम सभा की बैठक में उपस्थित होने वाले सदस्यों के नाम उपस्थिति रजिस्टर में दर्ज किये जाने का प्रावधान है किन्तु बैठक एक बार प्रारंभ होने के बाद भी सदस्यों का आना चलता रहता है और रजिस्टर में सदस्यों के दस्तखत होते रहते हैं। पूरी बैठक में सभी सदस्य उपस्थित रहते हों यह सुनिश्चित करना मुश्किल होता है।

सुझाव :

  1. ग्राम पंचायत सरपंच, पंच, सदस्यों, सचिवों को ग्राम सभा आयोजित करने हेतु प्रेरित किया जावे। प्रोत्साहन स्वरूप वर्ष में सर्वाधिक एवं सफल आयोजित ग्राम सभाओं को पुरूस्कार दिया जावे।
  2. ग्राम सभा के सुव्यवस्थित आयोजन हेतु नामांकित नोडल अधिकारी को सौंपे दायित्वों की समीक्षा मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत द्वारा सत्त रूप से की जावे।
  3. ग्राम सभा सदस्यों को ग्राम सभा का एजेण्डा एवं सूचना की तामीली सुनिष्चित करवाने के लिए "सूचना प्राप्ति रजिस्टर" संधारित किया जावे।
  4. ग्राम सभा की बैठक में ग्राम सभा सदस्य अधिक संख्या में उपस्थित होवें एवं बैठक की सूचना उन्हें समय पर मिले। कुछ ग्राम पंचायतों में इस दिशा में सराहनीय प्रयास किये हैं। जिसके अंतर्गत सभा की लिखित सूचना तथा सदस्यों के घर जाकर "चावल दाने" डालकर बैठक में आमंत्रित किया गया।
  5. ग्राम सभा बैठक स्थल में बिछावन, पेयजल व्यवस्था के साथ वातावरण सुन्दर बनाने हेतु तोरन, बन्दनवार से सजाया जा सकता है।
  6. सभा स्थल पर पंचायत एवं हितग्राहियों से संबंधित योजनाओं के पोस्टर तथा बेनर लगाये जायें।
  7. बैठक की शुरूआत प्रेरणा गीत से की जावे।
  8. बैठक के एजेण्डा अनुसार संबंधित जानकारी पूर्व से ही तैयार कर रखी जावे। संबंधित विभागों के अधिकारी/ कर्मचारियों को ग्राम सभा में जानकारी के साथ उपस्थित रहने हेतु पूर्व से सूचित किया जावे।
  9. ग्राम सभा की तिथि तय करते समय ग्राम सभा सदस्यों की उपलब्धता का ध्यान रखा जावे।
  10. ग्राम सभा में रखे जाने वाले अभिलेखों को सचिव द्वारा पूर्व से तैयार कर लिये जावें।
  11. ग्राम सभा की बैठक निर्धारित समय पर प्रारंभ हो। एक बार बैठक प्रारंभ हाने के उपरांत आने वाले सदस्यों के दस्तखत उपस्थिति पंजी में न लिये जावें।
  12. पूर्व की बैठकों में लिये जाने वाले निर्णयों की समीक्षा एवं उनका क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जावे।

निष्कर्ष :

ग्राम सभाओं का आयोजन करने के पीछे मंशा यह है कि ग्राम सभाओं को जो शक्तियां और कार्य सौपें गये हैं वह उनका उपयोग और निवर्हन करें। अधिनियम अनुसार ग्राम सभाओं को अत्यन्त महत्वपूर्ण शक्तियां, कार्य दिये गये हैं। ग्राम सभा की बैठक में रखे जाने प्रस्तावों पर निर्णय लिये जाते हैं।

इन निर्णयों को क्रियान्वित करने के लिए ग्राम सभा की ग्राम निर्माण एवं ग्राम विकास समिति को गठित करने का प्रावधान किया गया था किन्तु वर्ष 2005 में शासन द्वारा स्थाई समितियों के गठन पर रोक लगा दी गई और तब ही से स्थाई समितियों के कार्यो एवं शक्तियों को ग्राम पंचायत को दे दिया गया। इस व्यवस्था के चलते ग्राम सभा निर्णय लेती हैं और क्रियान्वयन का जिम्मा ग्राम पंचायतों को आ जाता है। ग्राम सभा द्वारा अच्छे निर्णय लिये जावेगें तब ही तो उनका अच्छा क्रियान्वयन हो सकेगा। ग्राम सभा में निर्णय पर्याप्त गणपूर्ति से होगा तो ग्राम सभा सदस्यों की सहभागिता बढ़ेगी। हमारा प्रयास होना चाहिए कि ग्राम सभा से सदस्यों की अधिक से अधिक सहभागिता हो, अन्यथा ग्राम सभा की बैठकें औपचारिकता मात्र बन कर रह जावेगीं।





  अनुक्रमणिका  
संजय राजपूत
(संकाय सदस्य)
ग्रामसभा का सशक्तिकरण

हमारे देश में वर्तमान में राजनीतिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण सबसे बड़ी आवश्यकता है। भारत की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में निवास करती है। महात्मा गांधी जी कहा करते थे कि ‘मेरा भारत गांव में बसता है’ केन्द्र या राज्य सरकार के लिए संभव नही है कि वह दूरस्थ क्षेत्रों में निवासरत गांवों की समस्याओं का समुचित समाधान कर सकें। इसलिए यह आवश्यक प्रतीत होता है कि प्रत्येक गांव में स्वशासन हो जिससे कि वह अधिक से अधिक समस्याओं को दूर करने की क्षमता रख सकें, तभी देश का वास्तविक विकास संभव होगा तथा गांव में बसे ग्रामीण नागरिक एक अच्छा जीवन व्यतीत कर सकेगें स्थानीय शासन की सबसे बड़ी विशेषता सत्ता का विकेन्द्रीकरण है। इसके द्वारा राजनीतिक सत्ता अधिक से अधिक लोगों के हाथों में पहुँच जाती है। इसी परिप्रेक्ष्य में मध्यप्रदेश में ग्रामसभा को सशक्त बनाया गया हैं। गांव का प्रत्येक मतदाता ग्राम सभा का सदस्य होगा। पंचायतराज अधिनियम के अनुसार प्रत्येक ग्राम सभा की वर्ष में कम से कम चार बैठक होना आवश्यक है। ग्राम सभा यदि बीच में आवश्यकता पड़ती है तो वह अतिरिक्त बैठकें बुला सकती है। ग्राम सभा की बैठकों के लिए एक शासकीय अधिकारी/कर्मचारी नियुक्त होगा साथ ही विशेष दशा में या आपात स्थिति में ग्रामसभा की बैठक तीन दिन की सूचना पर बुलाई जा सकती है।

ग्रामसभा का सशक्तिकरण किस प्रकार हो इस हेतु ग्राम सभा का कोरम पूरा होना आवश्यक होगा गांव में विकेन्द्रीकरण के जरिये ग्रामीण जनता की सीधे भागीदारी होना चाहिए परन्तु प्रायः अधिकांश ग्रामसभाओं का कोरम पूरा नही हो पाता है। यदि ग्राम पंचायत सचिव एवं सरपंच की इस बाबत् जवाबदारी सुनिश्चित कर दी जावे तो ग्रामसभा का कोरम पूरा हो सकता है। सभी मैदानी स्तर के अधिकारी/कर्मचारी ग्रामसभा में उपस्थित होकर अपने-अपने विभाग की समुचित जानकारी जनता को देवेंगे तो कोरम पूरा होने में आसानी होगी। अधिनियम की धारा 7ठ के अनुसार सभी मैदानी कर्मचारियों पर नियंत्रण ग्रामसभा का होगा, यदि दृढ़ संकल्प शक्ति से ग्राम पंचायत सचिव एवं सरपंच

प्रभावी सूचना देवेंगे तो निश्चित ही सभी मैदानी स्तर के अधिकारी/कर्मचारी ग्रामसभा में उपस्थित होंगे तथा जनता के लिए लाभकारी योजनाओं के चेक, राशि सभी के समक्ष ग्रामसभा में संबंधित हितग्राही को वितरित करेंगे जिससे जनता में ग्रामसभा के प्रति विश्वास उत्पन्न होगा और वे ग्रामसभा की बैठक में नियमित सम्मिलित होंगे। ग्रामसभा में उपस्थित सदस्यों को बोलने का, अपनी बात कहने का पूरा मौका दिया जाना चाहिए तथा ध्यान से उनकी बात सुनकर समस्याओं का हल किया जाना चाहिए। ग्रामसभा की बैठक की तिथि निर्धारित करने के पूर्व यह देखना होगा कि ग्रामीण जनों की मजदूरी का नुकसान तो नही होगा। जिस दिन ग्रामसभा की बैठक तय की है उस दिन संभवतः बाजार दिवस या अवकाश का दिन होना चाहिए जिसके फलस्वरूप ग्रामीण मजदूरों को मजदूरी से वंचित नही होना पडेगा। प्रत्येक पंच को 10 ग्रामसभा सदस्यों को लेकर ग्रामसभा में उपस्थित होना सुनिश्चित करना चाहिए। ग्रामसभा का प्रचार-प्रसार अधिक होना चाहिए तभी सदस्यगण ग्रामसभा में उपस्थित हो सकेंगे। ग्रामसभा की बैठक नही होने पर कलेक्टर द्वारा तत्काल कार्यवाही संबंधित के विरूद्ध होना चाहिए। समय पर एजेण्डा जारी किया जाना चाहिए।

ग्रामसभा के सदस्यों की समस्याओं से संबंधित आवेदनों का निराकरण समय पर नही होने के कारण सदस्यों का मनोबल टूटने लगता है तथा ग्रामसभा के प्रति अरूचि उत्पन्न हो सकती है। ऐसी स्थिति में सभी विभागीय मैदानी अधिकारी/कर्मचारी ग्रामसभा में उपस्थित रहकर अधिकतम आवेदनों का निराकरण यथासमय करेंगे तो ग्रामसभा सदस्यों का विश्वास, रूझान ग्रामसभा के प्रति बढ़ेगा और वे ग्रामसभा की बैठकों में उत्साह के साथ उम्मीद लिए शासन की लोक कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी तथा लाभ प्राप्त कर सकेंगे।





  अनुक्रमणिका  
जी.एस. लोहिया
(संकाय सदस्य)
बदलती तस्वीर

  अनुक्रमणिका  
पंचायतीराज की आधारभूत इकाई : ग्रामसभा

किसी अनुसूचित क्षेत्र में, ग्रामसभा की धारा 7 के अधीन प्राप्त शक्तियां तथा कृत्यों के अतिरिक्त निम्नलिखित शक्तियों तथा कृत्य भी होगें, अर्थात-

ग्राम सभा क्या है :

हमारे प्रदेश का ग्रामीण क्षेत्र राजस्व ग्राम एवं वन ग्राम की मौलिक इकाई में बंटा हुआ है। पंचायती राज के सदंर्भ में राज्यपाल ने इन्हीं राजस्व ग्राम व वन ग्राम की सीमा को ग्राम के रूप में घोषित तथा परिभाषित किया है। ग्राम सभा पंचायतीराज की आधारभूत इकाई है। यह ग्राम सभा प्रत्येक राजस्व ग्राम या वन ग्राम में उस गांव के वयस्क मतदाताओं को मिलाकर गठित की जाएगी। यानि गांव का प्रत्येक मतदाता ग्राम सभा का सदस्य होगा।

ग्राम पंचायत का शक्ति स्थान ग्राम सभा :

ग्राम पंचायत की वास्तविक शक्ति ऊपर से दिये गये अधिकार अथवा

आर्थिक सहायता नहीं है। ग्राम पंचायत की वास्तविक शक्ति ग्रामीण समुदाय की सहभागिता तथा नेतृत्व है।

ग्रामीणों की भूमिका :

लोकशाही अथवा प्रजातंत्र केवल 05 वर्ष में एक बार मतदान करके मतदाता का कर्तव्य पूर्ण नहीं होता। परंतु इसके लिए प्रत्येक मतदाता को ग्राम सभा की सभी बैठकों में उपस्थित होना है। गांव में किये जाने वाले प्रत्येक काम की निगरानी करना है, बैठकों में चर्चा, निर्णयों में भाग लेना है इसके साथ ही केवल निर्णय ही नहीं अपितु श्रमदान, दान, उपहार देकर अपनी भूमिका का निर्वाह करना है। गांव के 18 वर्ष के ऊपर के सभी मतदाता ग्रामसभा के सदस्य होते हैं वे ही ग्राम पंचायत का मुखिया (सरपंच) चुनते हैं। इसलिए गांव की सर्वसाधारण सभा ही ग्राम सभा तथा ग्राम पंचायत उसकी कार्यकारी संस्था है। 73वें संविधान संषोधन द्वारा ग्राम सभा को दी गई इतनी बड़ी शक्ति का उपयोग करके ग्रामीण अपने स्वयं का तथा गांव का विकास करेंगे तथा गांव की समस्याऐं गांव स्तर पर सुलझाने का प्रयास करेंगे तथा दिए गये अवसर का पूरा लाभ उठायेंगे ऐसा लग रहा था। परंतु पिछले 15-20 सालों में गांव के लोगों का स्वयं एवं गांव के विकास के प्रति उत्साह देखने नहीं मिला। ग्रामीण स्वयं सीख के, जानकारी प्राप्त करके गांव के लिए विकास योजना बनाकर खेती, सिंचाई, शिक्षा, रोजगार, सड़क आदि में प्रगति करेंगे ऐसा आपेक्षित था परंतु ऐसे अच्छे कार्य बहुत कम पंचायतों में देखने को मिले। शिक्षा की कमी के कारण आज भी गांव का नेतृत्व कुछ विशेष लोगों के हाथ में ही है।





  अनुक्रमणिका  
प्रीति वाखले
(संकाय सदस्य)
ग्रामसभा की मूल भावना की सफलता हेतु प्रयास

त्रिस्तरीय पंचायत राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा देने हेतु हमारे संविधान में 73 वां संविधान संषोधन किया गया तथा इसके अंतर्गत त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था लागू की गई है यह तीन स्तर ग्राम पंचायत जनपद पंचायत एवं जिला पंचायत है पूर्व में विकास संबंधी योजना केन्द्र एवं राज्य स्तर पर तैयार कर उनका क्रियान्वयन ग्राम स्तर पर किया जाता था योजना तैयार करने में पंचायती राज संस्थाओं की कोई भूमिका नहीं होती थी इस कारण योजना का क्रियान्वयन निचले स्तर पर सफलता पूर्वक नहीं हो पाता था, तथा पात्र लोग इस योजना से वंचित हो जाते थे केन्द्र एवं राज्य सरकार के ध्यान में यह बात आने के पश्चात त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था को मूर्त रूप देकर योजनाओं का तैयार करना एवं उनका सफल क्रियान्वयन हो इसका उत्तरदायित्व इन संस्थाओं को दिया गया । इसका परिणाम यह हुआ कि ग्राम की समस्याओं का समाधान ग्राम स्तर पर होने लगा । किन्तु अभी भी इन संस्थाओं में आपसी मतभेद उभरकर सामने आते है इस कारण क्रियान्वयन में कठिनाई उत्पन्न होती है योजना के सफल क्रियान्वयन व ग्राम स्तर पर विकास अच्छी प्रकार हो सकें इस हेतु कुछ सुधार किए जाएं इसकी शुरूआत की जा सकती हैं ।

ग्राम सभा एवं ग्राम पंचायत के कार्यो का स्पष्ट विभाजन ग्राम सभा एवं ग्राम पंचायत के बीच कार्यो का स्पष्ट विभाजन होना चाहिए । अभी ग्राम सभा स्तर पर ग्रामवार विकास योजनाएं तैयार की जाती हैं एवं ग्राम पंचायत इनका क्रियान्वयन करती है, कुछ योजनाओं में भौतिक व वित्तीय लक्ष्य ग्राम सभा वार दिए जाते हैं । उदाहरण के लिए इंदिरा आवास योजना को लें । प्रायः देखने में आता हैं कि ग्रामसभाओं की कार्यवाही महज कागजों तक सीमित होकर रह जाती हैं एवं इसमें जनता की भागीदारी नगण्य होती हैं । इस कारण योजनाओं में हितग्राहियों का चयन उचित प्रकार से नहीं हो पाता । जनता की भागीदारी सुनिष्चित करने के लिए निर्वाचित संस्थान को उत्तरदायी किया जाना चाहिए तथा 10% कोरम तथा महिलाओं की भागीदारी भी अनिवार्य की जाना चाहिए । ग्राम पंचायतों की वित्तीय स्थिति सुदृढ़ करना इस दिशा में देश व प्रदेश की आर्थिक स्थिति संतोष जनक नहीं है इस कारण ग्राम पंचायतों को योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु पर्याप्त अनुदान राशि नहीं मिल पाती हैं । धन के अभाव में पंचायतों में विकास योजनाओं को पूर्ण करने में कठिनाई हो जाती हैं । यदि पंचायतों में कुछ करारोपण कर दिए जाते है - जैसे संपत्तिकर, भवन कर, प्रकाश, स्वच्छता, व्यवसाय कर, पथु पंजीयन शुल्क ठेकों की नीलामी इत्यादि तब पंचायतों को अतिरिक्त धन राशि प्राप्त हो सकती है । पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित होना चाहिए । देश की आधी जनसंख्या महिलाओं की है त्रिस्तरीय पंचायतों के गठन में समुचित संख्या में महिलाओं को आरक्षण देकर उन्हें इन संस्थाओं में समान अवसर दिए जाने का प्रावधान, म.प्र. सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50% स्थान आरक्षित लिए है किन्तु विगत 15 वर्षो का अनुभव हमें बताता है कि मात्र चुनाव जीतने के लिए महिलाओं का नाम आगे किया जाता हैं एवं उनके स्थान पर पुरूष रिश्तेदार जैसे, पति, पुत्र, पिता, ससुर ही पंचायतों की संपूर्ण कार्यवाही संचालित करते हैं

ऐसी स्थिति में महिलाओं से संबंधित समस्याओं का समाधान संभव नहीं हो पाता स्थिति में सुधार हेतु महिलाओं में शिक्षा का प्रसार, उनको अधिकार संपन्न बनाना तथा सामाजिक बदलाव की आवश्यकता है । महिलाओं की योजनाओं में भागीदारी न होने के कारण अनेक योजनाओं का लाभ उनको नहीं मिल पाता है । आर्थिक व सामाजिक सुधार के लिए स्व: सहायता समूहों के गठन के अवसर महिलाओं को दिए जावे । शासन द्वारा चलाई जा रही समस्त योजनाओं व कार्यक्रमों का लाभ निचले स्तर पर लोगों को मिल रहा हैं कि नही इसका सतत निरीक्षण एवं भौतिक सत्यापन किया जाना अत्यावश्यक है शासन स्तर से इस कार्य हेतु ग्राम स्तर जनपद जिला पर निगरानी व मूल्याँकन सतर्कता समितियों का गठन किया गया एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति भी की गई हैं किन्तु प्रायः देखने में आता हैं कि यह समितियां मात्र औपचारितापूर्ण करने का कार्य करती है अनेक बार तो निगरानी समिति के सदस्य को यह जानकारी ही नहीं होती कि वो किसी समिति का सदस्य है ? इस विषम परिस्थिति का समाधान निगरानी समितियों को सशक्त बनाकर जागरूकता द्वारा किया जा सकता है । समिति को दायित्व व अधिकारों का बोध होना आवष्यक है । केन्द्र सरकार द्वारा 12 अक्टूबर 2005 से संपूर्ण देश में सूचना का अधिकार लागू कर कार्य में पारदर्शिता लाने का प्रयास किया है पंचायत से लेकर जिला स्तर तक सभी विभागों को जनता तक यह सन्देश पहुंचाना चाहिए कि इस अधिकार के अंतर्गत किये गये कार्यों का अवलोकन खर्च की राषि की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। पंचायती राज संस्थाओं के निर्वाचित प्रतिनिधियों का प्रशिक्षण अति महत्वपूर्ण है । प्रशिक्षण के माध्यम से वे अपने अधिकारों व कर्तव्यों को भली प्रकार से जान सकते हैं तथा इससे प्राप्त जानकारी का उपयोग क्षेत्र के विकास में कर सकते हैं। प्रशिक्षण के माध्यम से उनके कार्य करने की क्षमता का विकास होता है ।

भावनाओं के बिना विकास केवल भौतिक निर्माण बन कर रह जाता है । सार्वजनिक विकास से अपनत्व का भाव गायब होने से विकास के नाम पर निर्माण कार्यो में पंचायती अमले की रूचि निजी लाभों के चलते रह गई हैं । नतीजा साफ है कि सबसे निचले स्तर पर भी विकास योजनाओं का निर्माण और क्रियान्वयन भेदभाव का शिकार हो गया है । इसलिए आवश्यकता इस बात की भी हैं कि व्यवस्थाओं में चुस्ती लाने के साथ गांवों में पसरी वैमनस्यता की चादर को हटाने के प्रयास किए जाएं गांव में भावनात्मक एकता के मुद्दों की तलाश की जाए और उन्हें कागजों की दुनिया से दिलों तक पहुंचाया जाए । चूँकि इस काम के आंकडे़ निकाल कर कागजों पर नहीं सजाए जा सकते, अतः इस काम के लिए भाव प्रबण सोशल इंजीनियर्स को सामने आना होगा । राजनीतिक और प्रशासनिक नेतृत्व इनकी सहृदयता पूर्वक मदद करें, तभी सच्चा पंचायतीराज कायम हो पायेगा।





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(संजय जोशी)
(संकाय सदस्य)
महिला प्रतिनिधियों के प्रशिक्षण का मोड्यूल विकसित करने हेतु कार्यशाला

महात्मा गांधी राज्य ग्रामीण विकास संस्थान, जबलपुर में दिनांक 07 एवं 08 अप्रैल 2011 को ‘‘स्थानीय स्व:शासन हेतु क्षमतावर्द्धन परियोजना’’ के अंतर्गत त्रिस्तरीय पंचायतराज की निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के विशेष प्रशिक्षण हेतु माँड्यूल विकसित करने के लिए गैर 02 दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का उद्देश्य निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के लिए प्रशिक्षण माँड्यूल का विकास करना था। इस कार्यशाला में निर्वाचित महिला प्रतिनिधि, विषय विशेषज्ञ, गैर शासकीय संस्थाओं के प्रतिनिधि एवं संस्थान के संकाय सदस्य के रूप में कुल 29 प्रतिभागी उपस्थित हुए और उन्होंने प्रशिक्षण माँड्यूल विकसित करने में सहयोग प्रदान किया।

संस्थान, जबलपुर में दिनांक 13 एवं 14 जून 2011 को ‘‘स्थानीय स्व:शासन हेतु क्षमतावर्द्धन परियोजना’’ के अंतर्गत् 02 दिवसीय समीक्षा बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक का उद्देश्य निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के

प्रशिक्षण हेतु तैयार की गयी पाठ्य सामग्री पर विभिन्न विषय विशेषज्ञों के सुझाव आमंत्रित करना था, जिससे कि महिला प्रतिनिधियों को सरल एवं सहज पाठ्य सामग्री उपलब्ध हो सके एवं वे उससे प्राप्त जानकारी का उपयोग अपने कार्यों के सफलतापूर्वक संचालन में कर सकें। इस बैठक में कुल 21 प्रतिभागी उपस्थित हुए इसमें नवनिर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के लिये पाठ्य सामग्री की समीक्षा महिला एवं बाल विकास विशग, क्षेत्रीय समन्वयक, सेडमेप, परिवार परामर्श केन्द्र, स्वधार शेल्टर होम, कुटुंब न्यायालय, जिला गरीबी उन्मूलन परियोजना, द लाईवलीहुड स्कूल-बेसिक्स, गैर-शासकीय संस्थाओं के प्रतिनिधियों एवं महात्मा गांधी राज्य ग्रामीण विकास संस्थान, जबलपुर के प्रशिक्षकों द्वारा की गई तथा उत्कृष्ट सुझाव दिये गये। सुझावों के आधार पर पाठय सामग्री सुग्राह्य बनाई जा रही है।

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रमेश गुप्ता , म. गाँ. रा. ग्रा. वि. संस्थान - म. प्र. , जबलपुर

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