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त्रैमासिक - आठरहवां संस्करण जनवरी, 2016
अनुक्रमणिका हमारा संस्थान
  1. नवनिर्वाचित पंचायत पदाधिकारियों के प्रशिक्षण की कार्ययोजना एवं प्रगति
  2. अपनी बात ....
  3. सफलता की कहानी ‘‘बैंक ने लोन नहीं दिया तो निरक्षर महिला ने 6 साल में 435 गांवों में खुलवा दिए बैंक’’
  4. तीन सौ सत्तावन ग्राम स्मार्ट ग्राम बनेंगे
  5. एक दिहाड़ी मजदूर बन गया करोड़पति
  6. गांव की साफ-सफाई में ग्रामसभा सदस्यों की जबावदारी
  7. महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून
  8. आदिवासी क्षेत्रों में आजीविका
  9. ग्राम पंचायत विकास योजना

नवनिर्वाचित पंचायत पदाधिकारियों के प्रशिक्षण की कार्ययोजना एवं प्रगति

वर्ष 2015-2016 में महात्मा गाँधी राज्य ग्रामीण विकास संस्थान के द्वारा संपूर्ण प्रदेश में राजीव गांधी पंचायत सशक्तिकरण अभियान (आरजीपीएसए) के अंतर्गत पंचायतराज निर्वाचित प्रतिनिधियों एवं शासकीय अमले के क्षमतावर्धन तथा कौशल विकास हेतु ग्राम पंचायत विकास योजना विषय शामिल कर वृहद स्तर पर प्रशिक्षण आयोजित किया जा रहा है। यह प्रशिक्षण .................... से प्रारंभ हुआ है।

जिला स्तर एवं जनपद स्तर के प्रतिनिधियों का प्रशिक्षण विभिन्न प्रशिक्षण संस्थानों जैसे - प्रशासन अकादमी, वाल्मी, एम.जी.एस.आई.आर.डी., ईटीसी, एसजीआईवायएलडी, एवं पीटीसी में आयोजित किया जा रहा है। ग्राम पंचायत स्तर के निर्वाचित प्रतिनिधियों का प्रशिक्षण जनपद पंचायतो में नव-निर्मित विकासखंड स्त्रोत केन्द्रों एवं ग्राम पंचायतों के क्लस्टरों में किया जाना है। इस योजना के अंतर्गत कुल 3,92,884 निर्वाचित प्रतिनिधियों को प्रशिक्षित किया जाना है जिसमें अप्रैल माह से अगस्त तक .................... निर्वाचित प्रतिनिधियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है।

शासकीय अमले की लक्षित संख्या 63,238 रखी गई है। जिसमें ................ प्रतिभागियों का प्रशिक्षण संपन्न हो चुका है। इस प्रकार कुल 1,71,279 पंचायतराज प्रतिनिधियों व शासकीय अमले को प्रशिक्षित किया है। ग्राम पंचायत स्तर का प्रशिक्षण भी अतिशीघ्र प्रारंभ कर दिया जावेगा।

  अनुक्रमणिका  
सफलता की कहानी ‘‘बैंक ने लोन नहीं दिया तो निरक्षर महिला ने 6 साल में 435 गांवों में खुलवा दिए बैंक’’
अपनी बात .....


‘‘पहल’’ का 18वां संस्करण प्रकाशित करते समय हमें अत्याधिक हर्ष महसूस हो रहा है। भारत सरकार ने स्मार्ट सिटी की तर्ज पर ‘‘स्मार्ट विलेज स्मार्ट पंचायत’’ को ग्राम पंचायत विकास योजनांतर्गत लागू करके प्रत्येक ग्राम एवं ग्राम पंचायत को पूर्णरूपेण विकसित करने का खाका तैयार किया है।

‘‘पहल’’ के इस संस्करण में इन योजनाओं पर आलेख प्रस्तुत किये गये है। इसके साथ-साथ राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन विषय पर भी आलेख प्रस्तुत किया गया है।

इसके साथ-साथ ‘‘पहल’’ के इस अंक में कई सफलता की कहानी के जरिए भी ग्रामीण अंचलों के विकास में दिये गये योगदान पर प्रकाश डालने की कोशिश की गई है।

हमें पूर्ण विश्वास है कि मिश्रित विषयों पर आधारित ‘पहल’ का यह संस्करण आपकी आशाओं के अनुकूल एवं रूचिकर प्रतीत होगा।
शुभकामनाओं सहित।



संजय कुमार सराफ
संचालक

यह कहानी है ‘‘श्रीमती रेवा बाई’’ की। रेवा मध्यप्रदेश के ग्राम गंधवानी जिला बड़वानी की रहने वाली हैं। वे पढ़ना - लिखना नहीं जानतीं हैं, पर उनका शुरू किया काम आज 435 गांवों तक पहुँच चुका है, वो भी छह साल में। ये संस्था अब तब 17 करोड़ रूपए का लोन बांट चुकी है। 56 हजार महिलाएं इससे जुड़ी हैं। वर्ष 2010 में श्रीमती रेवा बाई के पास पास खेती बाड़ी के लिए पैसे नहीं थे। ऐसा ही कुछ हाल गांव की अन्य महिलाओं का भी था। उस समय गांव की कुछ महिलाओं के साथ वे बैंक लोन लेने गई परन्तु बैंक ने गारंटर और जमीन जेवरात की कमी के कारण बैंक ने लोन देने से मना कर दिया। इस घटना से प्रेरित होकर श्रीमती रेवा बाई और उनकी साथी महिलाओं ने ठाना कि उन्हें इस समस्या के समाधान के लिए अपनी ओर से ही कुछ कोशिश करनी पड़ेगी, कुछ करना होगा।

और उन्होंने गांव की महिलाओं को इक्ट्ठा कर समूह बनाया। समूह के माध्यम से वे एक-दूसरे की मदद करने लगीं। समूह में बचत राशि एकत्रित होने लगी। शुरू में 5-5 रूपए और फिर 10-10 रूपए जमा किए। जब इनका काम बढ़ा तो मध्यप्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अधिकारियों को भी इसका पता चला तो इनके स्व-सहायता समूहों को म.प्र. ग्रामीण आजीविका मिशन से भी मदद मिल गई। अब श्रीमती रेवा बाई के द्वारा बनाया गया समूह अच्छा काम करने लगा था। उन्होनें अपने प्रयासों से आस-पास के गांवों में स्व-सहायता समूहों को जोड़ कर ‘‘समृद्धि स्वायत्त साख सहकारी संस्था’’ बना ली। और कुछ समय के बाद संस्था का वर्ष 2011 में रजिस्ट्रेशन करा लिया।

अब ‘‘समृद्धि स्वायत्त साख सहकारी संस्था’’ फेडरेशन की बैंक के रूप में काम करने लगा। फेडरेशन द्वारा समूहों की बचत राशि से ही जरूरतमंदों को लोन दिया जाने लगा। इसके साथ ही साथ और भी गांवों की महिलाओं को जोड़ा जाने लगा। अब तक लगभग 56 हजार महिलाएं इस संस्था से जुड़ चुकी हैं। लगभग 435 गांवों में संस्था की शाखाएं हैं। यह फेडरेशन लगभग 17 करोड़ रूपए का लोन बांट चुका है। यहां बहुत पढ़े लिखे लोग नहीं हैं, पर हिसाब-किताब पक्का है। खास बात यह है कि, कोई सदस्य डिफाल्टर भी नहीं है।

अभी इस संस्था की कुल जमा पूंजी करीब 12.50 करोड़ रू. है। अब तो ऐसे गांवों में भी इनकी शाखाएं खुल गई जहां न पक्की सड़क है और न ठीक से बिजली मिलती है, पर महिलाओं को लोन जरूर मिल जाता है।

सुश्री सुमित सिकदार जो एसडीएम बड़वानी हैं वे इस संस्था के संबंध में कहती हैं कि, ‘‘यह पहल आर्थिक क्रांति जैसी है। पहले ये छोटे-मोटे लोन के लिए भी बैंक पर निर्भर थे। अब अपना बैंक चला रही हैं।’’

तीन सौ सत्तावन ग्राम स्मार्ट ग्राम बनेंगे

सिंहस्थ-2016 के मद्देनजर उज्जैन क्षेत्र के 357 ग्रामों को स्मार्ट ग्राम बनाया जायेगा। सिंहस्थ के दौरान तीर्थ-यात्री इन ग्रामों से गुजरकर अच्छा अनुभव करेंगे। 30 सितम्बर को उज्जैन में स्मार्ट ग्राम स्मार्ट पंचायत स्तर पर आयोजित कार्यशाला में पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री माननीय श्री गोपाल भार्गव ने यह जानकारी दी।

मंत्री श्री भार्गव जी ने कहा कि स्वकरारोपण योजना में पंचायतों के 20 लाख का स्व-करारोपण करने पर शासन की ओर से उन्हें 40 रूपये की राशि दी जायेगी। चयनित ग्रामों के निवासियों को सुनिश्चित करना होगा कि ग्राम में मद्य-निषेध हो, सामाजिक कुरीतियों को त्यागा जाये तथा कोई भी व्यक्ति खुले में शौच और गांवों में झगड़े-विवाद नहीं करें।

सरकार द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं के अधीन ये ग्राम स्वयं ऐसा विकास करेंगे, जिससे इन्हें स्मार्ट विलेज के रूप में पहचान मिलेगी। प्रमुख रूप से अधोसंरचना का विकास, स्कूल भवन, आंगनबाड़ी, पंचायत भवन, यात्री प्रतीक्षालय, उप स्वास्थ्य के्न्द्र, शान्तिधाम, खेल मैदान, गोडाऊन का निर्माण, पेयजल, नल-जल योजना, ग्राम की आंतरिक सड़कों का सीसी रोड निर्माण, ठोस-तरल अपशिष्ट प्रबंधन, वृक्षारोपण, ग्राम पंचायत में हाट बाजार का निर्माण, उचित मूल्य की दुकान शामिल है।

गांवों के सभी घर पक्के बनाने के लिये मुख्यमंत्री आवास मिशन योजना का क्रियान्वयन, इंटरनेट एवं संचार व्यवस्था को पुख्ता करते हुए यथासंभव वाईफाई किया जाना, सभी ग्राम में सुन्दर साईन बोर्ड एवं माईल स्टोन लगाना आदि शामिल है। सभी ग्रामों के सभी आवास की एक रंग से पुताई होगी और स्ट्रीट लाईट की पर्याप्त व्यवस्था की जावेगी।

अपर मुख्य सचिव, श्रीमती अरूणा शर्मा ने बताया कि स्मार्ट गांव सिंहस्थ में आने वाले श्रद्धालुओं का अतिथि देवो भवः की अवधारणा के अनुरूप स्वागत करेंगे। सभी ग्रामों में सभी मकान पक्के होंगे। सभी घर में शौचालय, नल कनेक्शन तथा सड़क आदि की पूरी व्यवस्था होगी।

सभी ग्रामों में स्कूल, आंगनबाड़ी, पंचायत भवन, आदि होंगे। ग्रामों को वाई-फाई करने का भी प्रयास किया जा रहा है। गांव के पांच किमी के रेडियस में पोस्ट आफिस और बैंक सुविधा होगी। इन सभी ग्रामों में ठोस-तरल अपशिष्ट प्रबंधन के तहत जैविक और अजैविक कचरा अलग-अलग किया जायेगा। प्लास्टिक का कचरा 18 रूपये प्रति किलो में खरीदा जायेगा, जिसे सड़क निर्माण में इस्तेमाल किया जायेगा।

कार्यशाला में सांसद डाॅ. चिन्तामणि मालवीय, विधायक डाॅ. मोहन यादव, श्री दिलीप सिंह शेखावत, श्री अनिल फिरोजिया, श्री सतीश मालवीय, श्री बहादुरसिंह चैहान और जिला पंचायत अध्यक्ष श्री महेश परमार मौजूद थे।

पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा उज्जैन तथा इंदौर संभाग के कुल 357 ग्रामों का चयन स्मार्ट विलेज-स्मार्ट पंचायत योजना में किया गया है। इसमें उज्जैन जिले के 67, मंदसौर के 67, नीमच के 32, रतलाम के 73, देवास के 37, शाजापुर के 13, आगर मालवा के 16, धार के 19 और झाबुआ के 33 ग्राम शामिल हैं।




  अनुक्रमणिका  
सौजन्य से: पंचायिका, अक्टूबर, 2015,
एक दिहाड़ी मजदूर बन गया करोड़पति

एक पिछड़े इलाके में मजदूरी करके आजीवका चलाने वाले श्री तोताराम कुशवाहा के भविष्य के बारे में यही कल्पना की जा सकती थी वह दूसरों के खेतों में दिहाड़ी मजदूरी करके गरीबी में ही जीवन बिताएगा। लेकिन खुद तोताराम के इरादे कुछ और ही थे। निरन्तर परिश्रम और शासकीय मदद ने तोताराम की जिन्दगी बदल दी। आज तोताराम एक करोड़पति किसान है। सरकारी योजनाओं की मदद और अपनी मेहनत से संपन्न हुए किसानों पर लिखी सफलता की गाथाओं में से ये उनकी भी है।

खरगौन जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटे-से गांव गोलवाड़ी के तोताराम दूसरों के खेतों में काम करके किसी तरह अपनी आजीवका चलाया करतें थे। उनके पीढि़यों से दिहाड़ी मजदूरी करके ही परिवार का भरण-पोषण होता आ रहा था। लेकिन तोताराम ने अथक मेहनत की ओर सूझबूझ से ऋण लेकर अन्य कार्य भी किए।

फिर किराये पर जमीन लेकर सोयबीन, अरंडी, गेहॅू की खेती की। बाद में तोताराम ने गोलबाड़ी में जमीन खरीद ली। उसकी तरक्की में शासन के उधानिकी विभाग का प्रमुख योगदान हैं। उघानिकी विभाग ने उधानिकी के जरिए तोताराम की खेतीबाड़ी का कायाकल्प करने हेतु तोताराम और उनकी पत्नी रूकमणि को तकनीकी मार्गदर्शन के साथ-साथ हल्दी एवं अदरक की फसलें लेने कि लिए बीस-बीस हजार रूपये का अनुदान दिया। इसके बाद इन दोनों पति-पत्नि को एक बार फिर हल्दी एवं अदरक के लिए दस-दस हजार रूपये का अनुदान दिया। चंद महीनों की उधानिकी खेती में यह सफर इतना कामयाब हुआ कि लागत के अलावा लाभ हुआ। तोताराम का उत्साह कुलांचे भरने लगा। वह अब साल में तीन फसलें लेते है। इसमें मक्का, सोयाबीन, मिर्च, हल्दी, अदरक, प्याज, कपास, पपीता, करेला, टमाटर, गेहूॅ, चना आदि की फसल शामिल है। तोताराम का बैंक खाता अब उधानिकी फसलों की कमाई के बाद भर रहा है। अच्छी कमाई से उनके सारे सपने साकार हो गए। अब उनके पास कहीं कोई तंगी नहीं है। खेती की कमाई से उन्होने खेत में ही मकान बनवा लिया। एक मकान नागलवाड़ी में बनवाया है। तीन ट्रेक्टर, एक मारूति वेन और एक टाटा सूमो भी खरीद ली है। यही नहीं जमीन भी खरीद ली, एक मोटर साइकिल भी खरीदी, खेत में एक कुआं खुदवाया एवं तीन बोर करवाए। अपने खर्च पर खेत में डीपी लगा ली, गेहॅूं निकालने वाली मशीन खरीद ली। वह कई ऐकड़ जमीन के मालिक है। पैसे आने की वजह से तोताराम का जीवनस्तर बदल गया है। उन्होने अपने दोनो बेटों को भी खेतीबाड़ी के काम में लगा दिया है। अब उन्हें अपने बेटों के लिए नौकरी की जरूरत नही है।




  अनुक्रमणिका  
त्रिलोचन सिंह,
संकाय सदस्य
गांव की साफ-सफाई में ग्रामसभा सदस्यों की जबावदारी

स्वच्छता एवं सफाई हमारी जीवनशैली का अभिन्न अंग है। व्यक्तिगत स्वच्छता और वातावरण की शुद्धता का जीवन में क्या स्थान है, वह हम सभी जानते हैं। जहां हम रहते हैं वहां के वातावरण का असर हमारी मानसिक और शारीरिक अवस्था पर पड़ता है। हमारे देश का अधिकांश इलाका गांवों के अन्तर्गत आता है। अगर हमारे गांव स्वच्छ हों ऐसा हमारा प्रयास होना चाहिए। इसके लिए व्यक्तिगत और सामुदायिक प्रयत्नों की आवश्यकता है। इस दिशा में बहुत सी ग्राम सभाओं के द्वारा अनुकरणीय प्रयास किये जा रहे हैं। पंचायत एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 में भी ग्राम सभाओं के महत्वपूर्ण कार्य और दायित्व सौंपे गये हैं। ग्राम सभा के सभी सदस्य अगर चाहे तो अपने ग्राम को पूरी तरह से स्वच्छ बना सकती हैं। ग्राम को स्वच्छ बनाने के लिए निम्न उपाय किये जा सकते हैं:-

(1) शुद्ध पेयजल की प्राप्ति व सुरक्षित रख-रखाव - एक स्त्रोत जैसे नदी/ तालाब में नहाने, पशुओं को नहलाने, कपड़े घोने, स्त्रोत के पास शौच करने और पीने के पानी लेने से रोगाणु युक्त मल कई तरीकों से जैसे हवा, वर्षा, पषुओं या मनुष्यों के पैरों से नदी/ तालाब के पास पहुँच जाता है, जिससे कई बीमारियां उत्पन्न होती है। बीमारियों से बचने के लिए पीने के लिए हमेशा हैन्डपम्प या सार्वजनिक नल जैसे सुरक्षित जल स्त्रोतों का पानी इस्तेमाल करें। उबले हुए पानी को साफ बर्तन में ढक कर रखें। हैन्डपम्प या सार्वजनिक नल न होने की स्थिति में पानी उबालकर पीयें। पानी को कीटाणु रहित करने के लिए उसमें क्लोरीन की गोली डालें। पानी भरते समय बर्तन में हाथ अंदर नहीं डालें एवं पानी के भरने के बाद बर्तन को ढक दें। पानी को साफ बर्तन में जमीन से ऊपर ढक कर रखें। पानी का बर्तन रोज पानी भरने से पहले अच्छी तरह साफ करें। घड़े आदि से पानी निकालने के लिये लंबी डंडी वाले बर्तन का इस्तेमाल करें एवं हाथ घड़े के अंदर नहीं डालें।

रूके हुए पानी में मच्छर बढ़ते है, जिनसे मलेरिया और फाइलेरिया जैसी बीमारियाँ फैलती हैं। घर में रसोई का बेकार पानी बगीचे तक ले जाने के लिए नाली बनायें। बचीगे में परिवार के इस्तेमाल के लिए कुछ सब्जियां उगायें। यह ध्यान रखें कि नाली का ढ़ाल काफी हो, ताकि पानी आसानी से बह जाये। स्नान घर के पानी की निकासी के लिए सोख्ता गड्ढा बनायें। स्नानघर के पानी को बगीचे में ले जाना ठीक नहीं है क्योंकि उसमें साबुन होता है।

ग्रामीण क्षेत्र में स्वच्छ पेयजल के बारे में लोगों को समझाने जरूरी है कि साफ दिखने वाला पानी सही मायने में साफ नहीं है यह जरूरी नहीं होता कि जो पानी साफ दिखे वह पीने योग्य भी हो। पेयजल स्वच्छ दिखने से अधिक स्वास्थ्यकर होने पर जोर देने की जरूरत है। पेयजल को साफ बर्तन में ढक कर रखना, उसको जल भरने, जल को ले जाने और रखने में होने वाली त्रुटियों के बारे में बताना और सही तरीके अपनाना को प्रेरित करना चाहिए। पेयजल स्त्रोत से घर तक ढक लाना, पेयजल निकालते समय डंडीदार लोटे का इस्तेमाल करना एवं अंगुलियाँ न डुबाना जैसी छोटी-छोटी सावधानी बरत कर शुद्ध पेयजल प्राप्त किया जा सकता है। क्लोरिनेशन, वाटर फिल्टर और उबले पानी का उपयोग कर पानी को शुद्ध किया जा सकता है। अशुद्ध पानी से बहुत सी बीमारियां आ जाती हैं जिनकी जानकारी देना और उनके रोकथाम के बारे में समझाईश देने भी जरूरत है। गांव में पेयजल के प्रमुख स्त्रोत कुएं, बोरवेल, नदिया, तालाब इत्यादि उपलब्ध हैं। जिसको उपयोगी और साफ बनाने का दायित्व ग्राम पंचायत और ग्राम सभा का है।

(2) मानव मल का सुरक्षित निपटान (स्वच्छ शौचालय)- आज खुले में शौच जाना ग्रामीण क्षेत्र के लिए अपने आप में विकट चुनौती बनी हुई है। लोग यह सोचते हैं कि वे अपने घर से दूर शौच के लिए जा कर मलत्याग कर रहे हैं तो गंदगी घर से दूर हो गयी।

वास्तव में देखा जाए तो मल की गंदगी मनुष्य, पशुओं के पैरों, वर्षा जल आदि के माध्यम से घर तक आ जाती है। सबसे बड़ी किल्लत तो महिलाओं और बच्चें की है। महिलाएं घर से बाहर शौच के लिए जाती हैं, सड़क के किनारे मल त्याग करने के लिए बैठतीं हैं और वे सड़क के यातायात, आवाजाही से बार-बार व्यवधानित होती रहती हैं। इस कारण से सुरक्षित तरीके और सुविधा से मलत्याग करने में वे असहज महसूस करतीं हैं। इस लिए खुले में शौच जाने की आदत में बदलाव करना होगा। इसके लिए घर पर ही शौचालय बनावें। अगर घर पर जगह न हो तो गांव में सामुदायिक शौचालय बने। मल का त्याग शौचालयों में ही हो।

(3) व्यक्तिगत सफाई- शौच जाने के बाद और भोजन करने के पहले साबुन से हाथ धोएं। रोजाना साबुन से नहाएं और बाल धोएं। धुले हुये कपड़े पहनें। नाखून नियमित रूप से काटते रहें और उन्हें हमेशा साफ रखें। खांसते और छींकते समय अपना मुँह और नाक रूमाल से ढ़क लें। रोजाना सबेरे उठकर और रात में सोने से पहले दांत साफ करें। सड़क पर कूड़ा-करकट नहीं फेंके। घर का गंदा पानी सड़क पर इकट्ठा न होनें दें। बच्चों को घर से बाहर खुले में व नालियों में शौच न करने दें।

(4) घर एवं भोजन की स्वच्छता- घर में हवा और धूप आने के लिए खिड़कियां रखें। रोजाना फर्श पर झाडू लगाकर कूड़े को कूड़ेदान में फेकें। कच्ची खाई जाने वाली सब्जियों, फलों आदि के साथ-साथ पकाई जाने वाली सब्जियों को भी ठीक तरह से धोना जरूरी है। खेत में शौच करने से मल से रोग पैदा करने वाले जीवाणु सब्जियों में पहुँच जाते हैं और सब्जियां दूषित हो जाती है। ये जीवाणु इतने छोटे होते कि इन्हें देख पाना मुश्किल होता है अगर बिना धोए सब्जियों को पका लिया जावे तो ऐसी सब्जियों से अनेक रोग होने का खतरा बना रहेगा। घर में चूल्हे से होने वाले धुएं से बचने के लिए चिमनी वाले चूल्हे का इस्तेमाल किया जा सकता है।

(5) गंदे पानी की निकासी (सोख्ता गढ्डा)- जल के प्रमुख स्त्रोतों जैसे हैण्डपम्प, कुएं, तालाब, नल, घरों से निकलने वाले पानी से बहुत गंदगी फैलती है। अगर इन स्थानों को चिन्हित कर वहां पर सोख्ता गढ्डा बनवा दिया जावे तो गंदगी से फैलने वाली बहुत सारी दिक्कतों और बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है।

(6) घरेलू कूडा-करकट, गोबर एवं कृषि जनित कचरे का सुरक्षित निपटान- घरेलू कूडा-करकट, गोबर एवं कृषि जनित कचरे का सुरक्षित निपटान किया जाना चाहिये। जमीन में टांका बना कर इससे खाद बनाई जा सकती है। गौशाला से निकले फालतू गोबर और फर्श से बटोरा हुआ कूडा करकट डाल कर इससे खाद बनाई जाती है।

(7) पर्यावरणीय स्वच्छता (सम्पूर्ण ग्राम की स्वच्छता)- हैण्डपंप के चारों तरफ गंदे पानी की व्यवस्था हो। गंदे पानी की निकासी के लिए सोख्ते गढ्ढे एवं नालियों बनाई जावें। कूड़े-करकट का व्यवस्थित निपटान की व्यवस्था हो। तालाब के व्यवस्थित और स्वच्छ घाट की व्यवस्था हो।

  अनुक्रमणिका   डाॅ. संजय राजपूत,
संकाय सदस्य

महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून

हमारे देश की आबादी का आधा हिस्सा महिलाएं है। एक तरफ जहां महिलाएं कार्यालय, कला, विज्ञान, निर्माण, प्रशासन, रक्षा, व्यवस्था और नेत्रत्व में पुरूषों के साथ बराबरी कर एक विकसित समाज की बुनियाद रख रही है वहीं देश में महिलाओं के साथ बढ़ती अपराधिक घटनाओं ने झकझोर कर रख दिया है।

बलात्कार, छेड़छाड़, उत्पीड़न, असमानता, घरेलू हिंसा, यौन अपराध, दहेज और कन्या भ्रूण हत्या जैसे घृणित कार्य आये दिन घट रहे है।

लेकिन म0 प्र0 शासन इन अत्याचारों और अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। महिलाओं की सुरक्षा और सहायता के लिए विशेष कानून भी बने है। कानून मुजरिम को सजा दिलवाते है। पीडि़त को न्याय दिलवाते है। ज्यादातर महिलाएं किसी न किसी तरह की घरेलू हिंसा का शिकार होती रहती है। अधिकतर महिलाएं इसे घरेलू बात या आपस की बात मानकर चलती है जब कि यह घरेलू मामला नही है। कानूनन इसे घरेलू हिंसा माना गया है:-

  • रमेश कमला का पति है वह दहेज के लिए अपनी पत्नी को मारता-पीटता है।
  • शबनम का पति रफीक शराबी है। शबनम थोड़ा बहुत जो भी कमाकर लाती है उसका पति रफीक उसे छीन लेता है। उसे भरण-पोषण के लिए कुछ भी नहीं देता है।
  • राहुल अपनी पत्नी ममता को बात-बात पर मानसिक चोट पहुंचाता है।
  • कान्ता एक विधवा औरत है। उसके परिवार वाले उसकी परवाह नहीं करते।
  • आभा और नरेश बिना शादी के एक साथ रहते है। नरेश आभा को अश्लील फिल्में देखने के लिए मजबूर करता है। वह आभा के न चाहने पर भी उसे शारीरिक संबंध करने के लिए मजबूर करता है।
  • अरूणा का पति उसे बेटा न पैदा करने के लिए मारता है।
  • उमा के माता-पिता नहीं रहे । उसके भाई उससे मार-पीट करते रहते है।

ये सारे उदाहरण है जो घरेलू हिंसा की बात करते है। लेकिन पीडि़त महिलाएं कानूनी पचडे़ में नही पडना चाहतीं। उन्हे लगता है कि कानूनी लड़ाई लम्बी चलती है और उधर संबंध बिगड़ने के साथ-साथ आर्थिक सहारा खत्म होने का डर भी हमेशा बना रहता है।

घर की बात कोर्ट -कचहरी में ले जाने पर उन्हे घर के बाहर का रास्ता भी दिखाया जा सकता है। बच्चों से भी अलग किया जा सकता है। घर-परिवार के ताने जिन्दगी भर सुनना पड़ सकते है। ये तमाम डर उसे कानून का सहारा नहीं लेने देतें। अधिकतर महिलाएं घरेलू हिंसा से छुटकारा चाहती है।

26 अक्टूबर 2006 से महिलाओं का घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम 2005 लागू किया गया है जिसे म0 प्र0 शासन ने पूरी संजीदगी से लिया है। केप्सन:- घरेलू हिंसा क्या है ?

  • इन कानून में घर की महिलाओं के साथ शारीरिक हिंसा, मानसिक हिंसा, यौनिक हिंसा, आर्थिक हिंसा, मौखिक हिंसा, मौखिक और भावनात्मक शोषण को घरेलू हिंसा माना गया है।
  • महिला या उसके किसी संबंधी को दहेज या किसी अन्य संपत्ति की मांग के लिए हानि या नुकसान पहुंचाना घरेलू हिंसा में शामिल है।

कानून ने पीडि़त महिला को जो अधिकार दिये है वे इस प्रकार है:-

  • मदद पाने के लिए आवेदन। (सुरक्षा आदेश, आर्थिक मदद, कस्टडी आदेश, आवासीय आदेश और क्षतिपूर्ति आदेश के लिए )
  • सेवा प्रदाता की सेवांए।
  • संरक्षण अघिकारी की सेवाओं की उपलब्धता।
  • 498-A,IPE के अंतर्गत शिकायत दर्ज करना।

दृश्य - प्रेम और सीमा का विवाह 10 वर्ष पहले हुआ था। उनकी कोई सन्तान नहीं है। इसी कारण से प्रेम अपनी पत्नी का पीटता है। एक दिन प्रेम ने अपनी पत्नी को घर के बाहर फेंक दिया, पड़ोस के रहने वाले गोपाल को इस घटना हिंसा के बारे में पता चला। अब प्रश्न पैदा होता है कि क्या गोपाल घरेलू हिंसा की सूचना सरक्षण अधिकारी को दे सकता है ? हाॅ।

गोपाल या कोई भी व्यक्ति लिखित या मौखिक रूप से घरेलू हिंसा की जानकारी संरक्षण अधिकारी को दे सकता है क्यों कि गोपाल ने भलमनसाहत में यह काम किया है। संरक्षण अधिकारी की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती है जो एक शासकीय अधिकारी या स्वैच्छिक संस्था का सहायक होता है जो घरेलू हिंसा की रिपोर्ट तैयार करके उसे मजिस्ट्रेट को सौंपता है। उसके साथ-साथ वो रिपोर्ट की नकल पुलिस स्टेशन और सेवा प्रदाता को भेजता है।

संरक्षण अधिकारी की जिम्मेदारियां इस प्रकार हैः-

  • पीडि़त का आवेदन तैयार करना।
  • पीडि़त को कानूनी मदद दिलवाना।
  • पीडि़त की शिकायत बिना खर्चे के दर्ज कराना।
  • यदि पीडि़त किसी सुरक्षित स्थान पर शरण लेना चाहती है तो उसकी मदद करना।
  • पीडि़त की डाॅक्टरी जाॅंच कराना।
  • जाॅंच कराने के बाद रिपोर्ट पुलिस स्टेशन और लोग के अन्तर्गत आने वाले मजिस्ट्रेट को भेजना।
  • पीडि़त और बच्चे को यातायात सुविधा उपलब्ध कराना।
  • पीडि़त और बच्चे को यातायात सुविधा उपलब्ध कराना।इन सुविधाओं की सूची तैयार करना (कानूनी मदद, सलाह, शरण, डाॅक्टरी जांच)।

इसके अलावा संरक्षण अधिकारी पीडि़त को अंतरिम सहायता दिलवाने के लिए उसके घर की जाॅच कर सकता है। पूरी जाॅच के बाद पीडि़त को उसके तोहफे, जेवर, बच्चों की सुपुर्दगी दिलवाने में भी मदद की जाती है। संरक्षण अधिकारी के साथ सेवा प्रदाता भी पीडि़त की मदद करता है सेवा प्रदाता तीन तरह से मदद करता है।

  • पीडि़त के निवेदन पर रिपोर्ट तैयार करके पुलिस आॅफिसर और मजिस्ट्रेट तक पहुचाना।
  • पीडि़त की डाॅक्टरी जांच कराकर उसे पुलिस स्टेशन और सुरक्षा अधिकारी तक पहुचाना।
  • यदि पीडि़त की मांग है तो उसे शरण उपलब्ध कराना।

पीडि़त द्वारा आवेदन प्राप्त होने के तीन दिन के भीतर मजिस्ट्रेट पहली सुनवाई कर सकता है। सुनवाई के लिए निर्धारण तारीख की सूचना मजिस्ट्रेट संरक्षण अधिकारी को देता है।

नोटिस प्राप्त करने पर संरक्षण अधिकारी 2 दिन के अंदर या मजिस्ट्रेट द्वारा निर्धाररित समय में सम्बन्धित व्यक्तियों को दंड देता है।

नोटिस में लिखा होता है आरोपी का नाम, घेरलू हिंसा का प्रकार और आरोपी की पहचान का विवरण। यदि आरोपी नोटिस लेने से मना करे तो उसके खिलाफ जमानती या गैर-जमानती वांरट जारी कर दिया जाता है या पीडि़त के पक्ष में एक तरफा आदेश जारी कर दिया जाता है।

पीडि़त को निम्नलिखित मदद दी जाती हैः-

  • संरक्षण आदेश।
  • आर्थिक मदद।
  • हिरासत आदेश।
  • आवास आदेश।
  • क्षतिपूर्ति आदेश।

आपात कालीन स्थिति में सुरक्षा अधिकारी या सेवा प्रदाता को घेरलू हिंसा की पुख्ता जानकारी ई- मेल, फोन या अन्य किसी माध्यम से भेजी जा सकती है।

पति-पत्नी यदि साथ रह रहे है तो घरेलू हिंसा की रिपोर्ट प्रथम श्रेणी ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के यहां की जा सकती है।

अगर आरोपी अंतरिम आदेश का उल्लघंन करता है और पीडि़त महिला के साथ फिर से हिंसा करता है तो आरोपी को एक साल की सजा, या 20 हजार रूपये जुर्माना या दोनो भी एक साथ भुगतने पड़ सकते है।

यदि किसी पक्ष को अदालत का फैसला मंजूर नही तो अदालत द्वारा दिए आदेश के 30 दिन के भीतर से सेशन कोर्ट में अपील कर सकता है।

घरेलू हिंसा के साथ दहेज भी एक बड़ा कारण है जो महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा अवरोध है। शादी के समय लड़के वालों द्वारा लड़की के घरवालों से मांगकर लिया जाने वाला सामान, रूपये, गहने आदि दहेज कहलाता है जिसका लेन-देन कानूनन अपराध है। दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 के अनतर्गत दहेज मांगने, लेन-देन और विज्ञापन देने वाले की भी सजा भुगतनी पड़ती है।

दहेज लेने या देने वाले को पांच साल तक की जेल एवं पन्द्रह हजार रूपये जुर्माने की सजा हो सकती है। दहेज की रकम 15 हजार से ज्यादा होने पर कुल रकम के बराबर जुर्माना हो सकता है । दहेज मांगने पर 6 महीने के जेल और 10 हजार रूपये जुर्माना हो सकता है। दहेज के लिए महिला के साथ शारीरिक क्रूरता करने पर तीन साल की जेल और जुर्माना दोनो हो सकता है।

क्रूरता का मतलब है:-

  • महिला की जान को खतरा।
  • उसके शारीरिक अंगों को खतरा।
  • उसके शारीरिक स्वास्थ्य को खतरा।

शादी के समय लड़की वाले बिना किसी मांग या दबाव के अपनी आर्थिक हैसियत से जो भी सामान, रूपये, गहने या सम्पत्ति लड़की को उपहार के रूप में देते है वह स्त्री धन कहलाता है । स्त्री धन पर सिर्फ लड़की का अधिकार होता है।

अक्सर कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न और शोषण का सामना करना पड़ता है। इसके लिए 1997 में उच्चतम् न्यायालय ने कुछ महत्वपूर्ण निर्देश दिये हैः-

  • शारीरिक स्पर्श या यौनमित्रता की कोशिश या मांग करना है।
  • यौन संबंधी पुस्तक या चित्र दिखाना।
  • किसी भी तरह यौन संबंधी अनचाहा व्यवहार।

यौन उत्पीड़न रोकने के लिए कुछ नियम निर्धारित किये गये है जो इस प्रकार हैः-

  • कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न की मनाही संबंधी सूचना सही ढंग से प्रकाशित,सूचित या वितरित की जायेगी।
  • अपराध होने पर मालिक को उचित कार्यवाही करनी होगी।
  • पीडि़त महिला अपने या अपराधी के कार्य स्थल को बदलने की मांग कर सकती है।
  • शिकायतों की जाॅंच के लिए कार्य स्थल पर जांच के लिए शिकायत समिति बनाना जरूरी है जिसकी मुखिया महिला होने के साथ-साथ समिति में भी आधी सदस्य महिलाओं का होना जरूरी है। बलात्कार जैसे कानूनो को रोकने के लिए महिला की गरिमा जुड़े कानून भी है। धारा 354 के अनुसार स्त्री की लज्जा भंग करने के लिए उस पर हमला आपराधिक बल का प्रयोग करने पर अपराधी को दो साल सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते है।

आइये जानते है बलात्कार क्या हैः-
शारीरिक सम्बन्ध-
किसी पुरूष द्वारा किसी महिला के साथ उसकी इच्छा के विरूद्ध बनाया गया हो। महिला को डरा- धमकाकर उसकी मजबूरी का फायदा उठाकर बनाये गये हों। दिमागी तौर पर कमजोर महिला या नशे के कारण महिला के होश में न होने पर बनाये गया हों।

बलात्कार की सजा धारा 376 के अनुसार:-

  • अगर पत्नी 12 से 15 साल की है तो उससे बनाये गये शारीरिक संबंध भी बलात्कार है। उसकी सजा दो वर्ष की कैद या जुर्माना हो सकता है।
  • अगर पत्नी 12 वर्ष से कम की है तो सजा हो सकती है।
  • बलात्कारी को कम से कम 7 साल की जेल या 10 साल या उम्रकैद तक हो सकती है और जुर्माना भी भरना पड़ सकता है।
  • संरक्षण में बलात्कार होने पर बलात्कारी को कम से कम 10 साल तक जेल जो उम्रकैद मे बदली जा सकती है और जुर्माना भी हो सकता है।

लड़की से छेड़छाड़ करने पर एक साल की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते है। महिलाओं की सुरक्षा संबंधी कारणों को लागू करने में म0 प्र0 शासन ने सख्ती से काम लिया है। समान वेतन और समान मजदूरी जैसे कानूनों का पालन भी किया जा रहा है। महिलाओं की सुरक्षा ही सुरक्षा है और प्रदेश की गरिमा की सुरक्षा है।

आदिवासी क्षेत्रों में आजीविका

देश के बीचों-बीच बसा मध्यप्रदेश की कई मायनों में अपनी एक अलग पहचान है इसका आदिवासी बाहुल्य प्रदेश होना। प्रकृति की गोद में बसी ये जनजातियां सदियों से जंगल और वनों में ही रहती आयी हैं। जंगल इनका घर भी है और रोजगार भी। इनकी संस्कृति की छटा देखते ही बनती है। ढोल की थाप पर थिरकती इन जनजातियों को लोक नृत्यों को करीब से देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते है। इनके लोक गायन में भी गजब की मिठास है। यहाॅं की परंपरा और जनजातीय रहन-सहन का अध्ययन किया जाता है। कोई इनके उत्सवों में खो जाता है तो कोई इनके भोलेपन में । इनकी बहुरंगी संस्कृति में एक अजीब सम्मोहन है। ये जनजातियाॅं मध्यप्रदेश की बड़ी पूंजी है।

यहाॅं की वन सम्पदा, औषधीय पौधे और घने जंगल जनजातीय समाज के ही नहीं मध्यप्रदेश के भी मूल्यवान आभूषण हैं। सांस्कृतिक सम्पदा के धनी होने के बावजूद जनजातीय समाज सदियों से अभाव और एकाकीपन झेलता रहा है। शहर की चमक-दमक से कटे होने के साथ ही ये विकास की मुख्य धारा से भी कटे रहे है।

हाशिये पर जी रही ये जनजातियाॅं निर्धनता और अभाव के चलते अक्सर पलायन करने को मजबूर रही हैैं। लेकिन आज परिदृश्य धीरे-धीरे बदल रहा है। मध्यप्रदेश शासन के अथक प्रयास से आज इन जनजातियों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ा जा रहा है।

स्वास्थ्य, शिक्षा के क्षेत्र में भी शासन द्वारा जनजातीय समाज की बेहतरी के लिए तरह-तरह की योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। धीरे-धीरे लोग आगे आकर इनका लाभ ले रहे है।

विकास और समृद्धि की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है आजीविका। आजीविका संवर्धन की दिशा में मध्य प्रदेश शासन ने जोरदार पहल की है जो अन्य आदिवासी बाहुल्य प्रदेशों के लिए भी एक मिशाल बनती जा रही है। मध्य प्रदेश शासन का एक सशक्त पहलू है, मध्य प्रदेश ग्रामीण आजीविका कार्यक्रम।

जनजातियों की आजीविका संवर्धन के लिए अनेक योजनाओं के क्रियान्वयन में मध्य प्रदेश शासन का पूरा अमला बेहद सक्रियाता से अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रहा है।

आइये कुछ जनजातियों क्षेत्रों की यात्रा पर चलते हैः- जिला डिण्डौरी अपने जनजातीय लोक कलाओं के लिए जाना जाता है। रोजी रोटी की तलाश में कभी यहांॅ के आदिवासियों को गांव छोड़कर शहरों की शरण लेनी पड़ती है तो कभी साहूकारों से मंहगी ब्याज दों पर कर्ज लेने को मजबूर होना पड़ता है।

शासन के प्रयासों से आज ग्राम सभाओं को सशक्त किया गया है। शादी विवाह, स्वास्थ्य, शिक्षा और गुजर-बसर की छोटी-छोटी जरूरतों के लिए उन्हें आज ग्राम-सभा की मदद से ऋण उपलब्ध हो रहे है। इस नई व्यवस्था से न केवल उनका जीवन स्तर संवरा है बल्कि पलायन भी कम हुआ है। उनके जीवन स्तर में भी इजाफा हुआ है।

ये है बरबसपुर गांव के चीमा सिंह मरावी। इन्हें विरासत में आधा एकड़ जमीन ही हमली जिस पर खेती करने से उन्हें बमुश्किल 300-400 रूपये प्रतिमाह की ही आय होती थी जो परिवार के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त नहीं थी। सिर्फ आधा एकड़ खेत से पूरे परिवार का पेट नहीं भरता था। चीमा सिंह ने गांव के लोगो से बातचीत की तो मालूम चला कि मध्य प्रदेश शासन की एक योजना के तहत् ग्राम-सभा के माध्यम से उसे ऋण मिल सकता है। उसे रास्ता मिल गया। उसे जानकारी मिल गई कि देश में आजकल पेट्रोल और डीजल के विकल्पों में नई तरह की खेती की मदद ली जा रही है। उसने रतनजोत के वृक्षारोपण के लिए ग्राम-सभा से बीज के लिए 10 हजार का ऋण लेने का आवेदन किया जिसे स्वीकृति मिल गयी।

शासन के परियोजना सहायता दल की मदद और परामर्श से उसके सारे समीकरण ठीक बैठते गये। उसे पहली खेप में शुद्ध रूप से 60,000 रूपये की आय प्राप्त हुई। आज उसे 10,000 रूपये प्रतिमाह की आमदनी हो रही है। आज उसकी आजीविका के साधन विकसित हो रहे है।

इसी तरह की सफलता की कहानियों से जिला डिण्डौरी में बहुत से अध्याय लिखे गये है और लिखे जा रहे है। आदिवासी युवकों को छोटे-छोटे रोजगार उपलब्ध होने से आजीविका संवर्धन के नये रास्ते मिले है।

ग्राम मुकुटपुर के 24 वर्षीय युवक शिवकुमार राठौर ने शासन के प्रयास रंग ला रहे है। आइये यात्रा का रूख झाबुआ की तरफ किया जावे। शासन के आय के प्रयासों से इसे जिले के गरीब और अशिक्षित आदिवासियों को आजीविका के नये-नये अवसर उपलब्ध हो सके है।

झाबुआ जिले के आमलीपठार गांव में रहने वाला युवक खुमान डिण्डौरी मजदूरी करके अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। जो परिवार के गुजर बसर के लिए नाकाफी थे। विवशता में पलायन करके वो नजदीकी शहर झाबुआ में काम करने चला गया जहां एक होटल में बर्तन साफ करने का काम उसे मिल गया। इस काम से उसे मात्र 30-40 रूपये ही रोजाना मिल पाते थे। घर परिवार का खर्च तो दूर उसके खुद का खर्चा भी नहीं चल पाता था। हालांकि काम करते-करते होटल का सारा काम सीख लिया था। तभी उसे किसी ग्राहक से मालूम चला कि मध्य प्रदेश शासन आदिवासियों के उत्थान के लिए गांव-गांव ऋण उपलब्ध करा रही है। वो गांव लौट गया। ग्राम-सभा से उसे और भी जानकारी मिली उसने ग्राम-सभा में ऋण के लिए आवेदन लगाया, जिससे उसे 15 हजार रूपये का ऋण प्राप्त हो गया। खुमान ने उस पैसे से होटल का काम शुरू किया। होटल खूब चलने लगा। आज वह इस होटल से 8000 रूपये हर माह आराम से कमा रहा है। उसने ग्राम-सभा से लिया ऋण भी लौटा दिया है। परिवार की गुजर-बसर पहले से बेहतर ढंग से हो रही है।

झाबुआ जिले में सफलता की कहानियों की एक लम्बी फहरिश्त है। कल सिंह भूरिया को ही ले लीजिये। गुलरपाड़ा गांव के रहने वाले इस कृषक की आय का साधन उसका खेत ही रहा है। जो आज भी है लेकिन आज तस्वीर बिल्कुल बदल गयी है। बरसों पहले परिवार के भरण-पोषण से जूझता कल सिंह आज एक बेहतर जीवन जी रहा है। यह संभव हो सका शासन की मदद से ग्राम-सभा के माध्यम से मिले ऋण के कारण। ग्राम-सभा से मिले 26 हजार रूपये के ऋण से उसने सब्जी उत्पादन के अपने पुश्तैनी काम को छोड़कर नर्सरी का काम शुरू किया जिससे आज वो 8000 रूपये प्रतिमाह तक कमा पा रहा है। मध्य प्रदेश शासन की मदद से ग्राम-सभा के माध्यम से आदिवासियों के अपने छोटे-छोटे व्यवसायों से अपनी बेहतरी के द्वार खोल लिये है। कही पंचर दुकान, सब्जी उत्पादन, बाल काटने की दुकान, किराना, दुकान, फेब्रीकेशन, मुर्गी पालन, आटो गैरेज, सैन्ट्रिंग, बिजली के सामान की दुकान, आधुनिक कृषि जैसे तरह-तरह के व्यवसायों से आदिवासियों की आजीविका में बेहतरी आने से उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य में भी बेहतरी आयी है।

गांव बड़लिया, आमली पठार, कतलीपुरा, मांडली, टिकड़ी जोगी, चारोलीपाड़ा, भतेरा और भमरदा जैसे कितने ही गांव है झाबुआ जिले में जहां शासन की मदद से लिखी गई कितनी ही सफलता की कहानियां। झाबुआ जिले के साथ ही सीमा लगी है जिला अलीराजपुर को यहां भी आदिवासियों के जीवन नये सिरे से संवर रहे हैं और वे आजीविका संवर्धन के नये-नये रास्तों पर चल पड़े है। आइये चलते हैं अलीराजपुर और वहां भी एक-दो कहानियों को बनाते हैं इस वृतचित्र के हिस्से में गुजरात की सीमा से सटे लोग भी आते हैं उनके जीवन और संस्कृति से रूबरू होने। कोई भगोरिया उत्सव के रंगों में खो जाता है तो कोई इनकी पंरम्पराओं और इनके पिछड़ेपन के बावजूद महिलओं को महत्व देने वाले इनके समाज का बखान करते हुये नहीं थकता।

अशिक्षा, बेरोजगारी, गरीबी, साहूकारी और न जाने कितने दानव थे जो उनकी आजीविका की राह में रोड़ा बने हुये थे। मध्य प्रदेश शासन ने इन सब बेरियरों को गिराकर उन्हें आजीविका संवर्धन के नये-नये आयामों से जोड़ा। ग्राम सभाओं के माध्यम से आज उनकी हर राह बेहतरी, खुशहाली और बेहतर कल की तरफ जाती दिखती है।

आइये डालते है यहां की कुछ कहानियों पर नजरः- किराने की दुकान के साथ-साथ महुआ सफलता की कहानी लिखने वाले ऐसे ही एक व्यक्ति है ग्राम अंबारी के सुरेन्द्र सिंह। पलायन की मजबूरी इनका भी दामन छोड़ने को तैयार नहीं थी। गरीबी और हालातों की मार झेलते-झेलते ये महीने में मुश्किल से एक हजार रूपये ही कमा पाते थे। इस छोटी सी कमाई से परिवार का भरण-पोषण नहीं हो पाता था और भी सवाल ये बीमारी का इलाज, बच्चों की शिक्षा और घर का रख-रखाव। मध्य प्रदेश शासन की ग्रामीण आजीविका परियोजना के बारे में जब इन्हें पता चला तो जैसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया है।

इन्होंने ग्राम-सभा में किराना दुकान खोलने को ऋण के लिए आवेदन किया। इनके जज्बे को देखकर ऋण को स्वीकृत मिल गयी और इन्हें 10000 रूपये का ऋण मिल गया। किराना दुकान खोलने के साथ इन्होंने महुआ संग्रहण का भी कार्य शुरू कर दिया। दोनो काम आज अच्छे से फल-फूल रहे है। सुरेन्द्र सिंह आज हर महीने में 3500 रूपये से भी ज्यादा कमा लेते है। बच्चे स्कूल जाने लगे है। जीवन स्तर में भी सुधार हुआ है।

अलीराजपुर में भी सफलता की अनेक कहानियों मध्य प्रदेश शासन की मदद से लिखी गयी है। सुदूर अंचलों में बसी ये जनजातियां जंगल ही जिनका बसेरा है। वे आज विकास के केन्द्र में है, हाशिये पर नहीं। मध्य प्रदेश शासन के प्रयास से ग्राम-सभाओं को सशक्त किया गया ताकि इनके माध्यम से सभी जनजातियों की आजीविका को और समृद्ध करके उन्हें स्वावलम्बन की तरफ ले जाया जा सके। झाबुआ अलीराजपुर, मण्डला, डिण्डौरी, शहडोल, अनूपपुर, बड़वानी, धार जैसे किसी भी आदिवासी जिले में जाकर कहीं भी देखे जा सकते है सफलता की कहानियों के बिखरे पृष्ठ जिनसे उदय हो रहा है। विकास का नया सूर्य, नई आभा, नयी सुबह के साथ।




  अनुक्रमणिका  
पंचायत सशक्तिकरण एवं जबावदेही प्रोत्साहन पुरूस्कार योजनांतर्गत ‘‘पी.ई.ए.आई.एस.’’ एप्लीकेशन पर दो दिवसीय प्रशिक्षण

एक व्यवस्थित तरीके से संसाधनों और प्राथमिकताओं के मध्य व्यवहारिक सामंजस्य कर तैयार किये गये अभिलेख को उस क्षेत्र विशेष के लिये विकास योजना के रुप में पारिभाषित किया जा सकता है। 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के प्रभावी होने के बाद ग्राम पंचायतों द्वारा अपनी इस भूमिका का निर्वहन प्रभावी ढंग से किया गया है। किंतु ग्राम पंचायतों द्वारा अपनी तात्कालिक आवश्यकता के अनुसार कार्य लिये जाते रहे है, किसी एक निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार संसाधनों का आंकलन कर वार्षिक कार्य योजना तैयार नहीं की जाती है। फलस्वरूप जहाॅ एक ओर संसाधनांे का प्रभावी उपयोग नहीं हो पाया है वहीं दूसरी ओर ग्राम पंचायत के समग्र विकास को भी लक्षित नहीं किया जा सका है। प्रदेश की त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था में संसाधनों और प्राथमिकताओं के व्यवहारिक सामजस्य के लिए ग्राम पंचायत ही मूल इकाई है इसलिए इस प्रक्रिया को ग्राम पंचायत विकास योजना के नाम से संबोधित किया गया है।

ग्राम पंचायत विकास योजना विषय पर त्रि-पंचायतीराज व्यवस्था अंतर्गत विभिन्न विभागीय एवं नव निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के क्षमतावर्द्धन एवं कौशल विकास हेतु महात्मा गांधी राज्य ग्रामीण विकास संस्थान, जबलपुर द्वारा 3 दिन का माड्यूल एवं पाठ्य सामग्री तैयार की जाकर दिनांक 08-10 मार्च, 2016 की अवधि में समस्त क्षेत्रीय ग्रामीण विकास प्रशिक्षण केन्द्रों के संकाय सदस्यों का प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण आयोजित किया गया।

इसके अतिरिक्त 15-17 मार्च 2016 की अवधि में राज्य स्तरीय 3 दिवसीय प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण का आयोजन कराया जा रहा है, जिसमें पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, लाईन डिर्पाटमेन्ट के साथ-साथ अन्य विभागों के राज्य स्तरीय संकाय सदस्यों एवं विभाग प्रमुखों को ग्राम पंचायत विकास योजना विषय पर आयोजित प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु आमंत्रित किया गया है।

संस्थान द्वारा वर्ष 2016-17 की कार्ययोजना में जनपद स्तरीय अधिकारियों/कर्मचारियों को मास्टर ट्रेनर बनाकर ग्राम पंचायतीराज अंतर्गत नवनियुक्त जनप्रतिनिधियों एवं ग्राम सचिव तथा ग्राम रोजगार सहायकों को प्रशिक्षण प्रदान किया जाना प्रस्तावित है।

प्रकाशन समिति

संरक्षक एवं सलाहकार
  • श्रीमती श्रीमती अलका उपाध्याय(IAS),प्रमुख सचिव,
    म.प्र.शासन,पं.एवं ग्रा.वि.वि.,
  • श्री ब्रजेश कुमार,सचिव,म.प्र.शासन,पं.एवं ग्रा.वि.वि.


प्रधान संपादक

संजय कुमार सराफ ,
संचालक,
महात्मा गांधी राज्य ग्रामीण विकास संस्थान-म.प्र., जबलपुर


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