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त्रैमासिक - बारहवां संस्करण (तृतीय वर्ष) जुलाई, 2013
अनुक्रमणिका हमारा संस्थान
  1. स्वसहायता समूहों के सदस्यों का क्षमतावर्धन हेतु प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण
  2. अपनी बात ....
  3. ग्रामसभा की बैठक में लिये गये निर्णय के विरूद्ध अपील
  4. महिलाओं की स्थिति और समाज
  5. लोक सेवा गारंटी - सुशासन की नयी पहल
  6. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीवका मिशन - एक परिचय
  7. सफलता की कहानी
  8. पंच परमेश्वर योजनांतर्गत ग्राम पंचायत सचिव का प्रशिक्षण

स्वसहायता समूहों के सदस्यों का क्षमतावर्धन हेतु प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण

संस्थान द्वारा स्वसहायता समूहों के सदस्यों की क्षमतावृद्धि हेतु प्रशिक्षण का आयोजन किया गया संस्थान द्वारा सर्वप्रथम इस कार्य हेतु चिन्हित सहभागी संस्थाओं के प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण संस्थान में मार्च 2013 के अंत में आयोजित किया गया। प्रशिक्षण में प्रतिभागियों को मुख्य रूप से गरीबी की समझ, समूह अवधारणा, समूह निर्माण, समूह बैठक, समूह नियमावली, नेतृत्व, लेखा संधारण, ग्राम स्तरीय संगठन की अवधारणा इत्यादि पर अभ्यास के माध्यम से जानकारी दी गई।

इसमें प्रथम फेस में कुल 6 प्रशिक्षणों के माध्यम से 113 प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण दिया गया। द्वितीय फेस में 1-5 जून 2013 में 3 सहभागी संस्थाओं के 61 प्रतिभागियों को मास्टर ट्रेनर को प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण गतिविधि आधारित होने से प्रतिभागियों को रूचिकर लगा। प्रशिक्षकों द्वारा उनके लिए आंबटित जिलों में स्वसहायता समूहों के सदस्यों को प्रशिक्षित किया गया, प्रथम फेस के प्रशिक्षणों में शामिल जिले सीधी, शाजापुर, सागर, दमोह, टीकमगढ़ व गुना जिले में कुल 2402 स्व सहायता समूहों के 12713 सदस्यों को 4 दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन किया गया।

इसके साथ ही इस श्रृंखला में दूसरे फेस में धार, मंडला व डिडौंरी जिले के 2060 स्व सहायता समूहों में 10569 सदस्यों में प्रशिक्षण का आयोजन सहभागी संस्थाओं के माध्यम से किया गया।

इस तरह उपरोक्तानुसार कुल 4462 स्व सहायता समूहों के कुल 23282 सदस्यों के प्रशिक्षण का आयोजन सहभागी संस्थाओं के माध्यम से संस्थान द्वारा करवाया गया ‘‘ उम्मीद की जाती है कि इन प्रशिक्षणों से स्व सहायता समूह ज्यादा सक्षमता से अपना कार्य करने में सफल होगे।

  अनुक्रमणिका  
ग्रामसभा की बैठक में लिये गये निर्णय के विरूद्ध अपील
अपनी बात .....






सहभागी प्रशिक्षण पद्धति की सबसे बड़ी खासियत है कि हम प्रशिक्षाथियों के अनुभवों के आधार पर योजनाओं के क्रियान्वयन को बेहतर बनाने के सुझाव दिए जा सकते हैं अनुभवों के इसी आदान प्रदान में हमने पाया कि जानकारी के आभाव में शासन के कई आदेश, निर्देश लागू ही नहीं हो पाते है। ‘पहल‘ के इस अंक में हमने ‘‘ग्रामसभा के निर्णय के विरूद्ध अपील’’, ‘‘लोक सेवा गारंटी अधिनियम’’, ‘‘राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’’ जैसे विषयों पर लेखों का समावेश किया है जिससे इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर आवश्यक जानकारी बाँट सकें।

सफलता की अनेक कहानिया हमें प्राप्त होने लगी हैं जिससे साबित हो रहा है कि सफल प्रयासों का अनुसरण ग्राम पंचायतें एवं ग्रामवासियों ने करना शुरू कर दिया है। यह बहुत उत्साहवर्द्धक संकेत है। हम प्रयास कर रहें है कि सफलता की इन कहानियों को आपके हर अंक में प्रकाशित कर सके।

शुभकामनाओं सहित।



निलेश परीख
संचालक

ग्राम सभा की बैठकों में लिये गये निर्णय अनुसार उनका क्रियान्वयन किया जाता है। ग्राम सभा में निर्णय, एकमतैन, सामान्य सहमति अथवा बहुमत से लिये जाते हैं। ग्राम सभा के द्वारा लिए गये निर्णय पर यदि किसी भी सदस्य को आपत्ति है तो उस सदस्य को अपील करने का अधिकार दिया गया है। बहुत से ग्राम सभा के सदस्यों को अपील करने के प्रावधानों के संबंध में स्पष्ट जानकारी न होने से वे अपने इस अधिकार का उपयोग नहीं कर पाते।

अब सवाल यह उठता है कि वह अपील करने के लिए कहा जावे और अपील करने के लिए उसे क्या करना चाहिए ?, तो आईये जानें इस संबंध में क्या प्रावधान किये गये हैं। ‘‘मध्यप्रदेश पंचायतराज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम’’ की धारा 7-ज -‘‘ग्राम सभा के विनिश्चय के विरूद्ध समिति को अपील’’, तथा इस धारा के अन्तर्गत बनाये गये नियम - ‘‘म.प्र. ग्राम सभा (अपील) नियम, 2001’’ में प्रावधान किये गये हैं। प्रावधानों के अनुसार जिस सदस्य को ग्राम सभा के निर्णय से अपात्ति हो वह, 30 दिनों के भीतर अपील समिति को अपनी आपत्ति लिखित में देना होगा। विशेष परिस्थितियों में अपील समय सीमा के बाद भी स्वीकार की जा सकती है। अपील समिति में तीन सदस्य होते हैं। समिति में पहला सदस्य, जनपद पंचायत अध्यक्ष, दूसरा सदस्य, संबंधित ग्राम सभा क्षेत्र का जनपद सदस्य एवं तीसरा सदस्य, उपखण्ड अधिकारी (राजस्व) होते हैं। इस समिति की अध्यक्षता जनपद पंचायत के अध्यक्ष के द्वारा की जाती है। अपील करने वाले ग्राम सभा सदस्य को अपील करते समय यह ध्यान में रखना है कि, ग्राम सभा के निर्णय के संबंध में उठाई गई आपत्तियों का कारण स्पष्ट रूप से अपील में लिखे और अपील को निर्धारित समय सीमा में प्रस्तुत करे। यह आपत्ति समिति के अध्यक्ष के साथ-साथ जिसके विरूद्ध आपत्ति है उसे भी अपील की प्रतिलिपि देनी होगी । आपत्ति प्राप्ति के पश्चात् अपील समिति आपत्ति से संबंधित समस्त जानकारी ग्राम सभा से प्राप्त कर उसका निपटारा यथाशीघ्र करेगी। समिति का निर्णय अंतिम होगा। जब तक यह निर्णय नही दिया जाता ,तब तक संबंधित आदेश या निर्णय पर अपील समिति द्वारा रोक लगाई जा सकती है। पक्षकारों की सुनवाई एवं जांच के बाद अपील समिति जिस आपत्ति की अपील की गई है उसे मंजूर या नामंजूर कर सकती हैं।

व्यवहारिक पक्ष
  • ग्राम सभा अपील नियम की जानकारी का अभाव।
  • अपील करने के लिए ग्राम सभा के सदस्य को अपील समिति के अध्यक्ष जो कि जनपद पंचायत के अध्यक्ष होते हैं, के पास जाकर अपील का आवेदन पत्र कार्यालय जनपद पंचायत में देने का प्रावधान है। ग्राम सभा सदस्य की जनपद पंचायत मुख्यालय पर पहुच का अभाव।
  • जिन्होंने अपील किया भी तो उनकी सुनवाई एवं निर्णय में अनावश्यक विलंब।

अपील समिति में अध्यक्ष, जनपद पंचायत एवं जिस क्षेत्र की ग्राम सभा है, उसके जनपद सदस्य और अनुविभागीय अधिकारी राजस्व सदस्य होते हैं। अध्यक्ष होने के नाते अपील समिति की कार्यवाही अपील समिति के अध्यक्ष के कार्यालय में मतलब जनपद पंचायत के कार्यालय में होती है कहीं कहीं यह भी सुनने में आता है कि अनुविभागीय अधिकारी राजस्व अपील समिति की सुनवाई में नहीं आते हैं जिससे भी निर्णय में विलंब होता है।

संजय राजपूत,
संकाय सदस्य, जबलपुर


अनुक्रमणिका  
महिलाओं की स्थिति और समाज

किसी भी समाज की प्रगति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उस समाज मे महिलाओं की स्थिती कैसी है एवं समाज के लोगो का महिलाओं के प्रति क्या नजरिया है। प्रगतिशील समाज हमेशा महिलाओं को आगे बढाने और उनकी तरक्की मे अपनी और अपने समाज की तरक्की को देखता है किंतु ऐसे लोगो की संख्या कम ही होती है। प्रायः भारतीय समाज मे जो कि पितृसत्तामक होता है प्रायः वहा यह देखा जाता है कि महिलाओं को सारे अधिकार तो दिए गए है किंतु उनके उपयोग करने व उन्हें क्रियान्वित करना कठिन होता है महिलाओं से उनके विचार तो लिए जाते है किंतु यह आवश्यक नही है कि उनकी बात पर गंभीरता से विचार हों कारण स्पष्ट है कि इस पुरूषवादी समाज मे महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक ही समझा जाता है। समाज की इसी मानसिकता के चलते धीरे-धीरे प्रगतिशील महिला वर्गो ने इसका विरोध करना प्रारंभ कर दिया और अब वे समाज मे अपनी समानता को लेकर बात करने लगी। आज महिलाओं के प्रति बढतें अपराधों का यदि बारीकी से अध्ययन किया जाए तो हम पाते है कि जहा भी महिला ने अपने हकों और अधिकारों के लिए आवाज बुलंद की है विरोधी पक्ष ने उसे हिंसा का सहारा लेकर समाप्त करने की कोशिश की है। हमारे समाज मे लोगो को समाज के लिए बनाए जाने पर बल दिया जाता है न कि समाज को हमारे अनुसार बनने का इस बात पर बहुत अधिक विवाद हो सकता है कि समाज की मानसिकता को बदलने की आवश्यकता है कि व्यक्ति विशेष की। आज यदि कोई भी महिला खासतौर पर पिछडें और आदिवासी एवं दलित समाज की यदि किसी भी क्षेत्र मे तरक्की करती है तो उसे उस समाज विशेष का खासकर पुरूषों का किसी न किसी प्रकार के विरोध का सामना करना पडता है। चाहे वह विरोध खुला हो अथवा घरेलू किसी भी रूप मे हो सकता है। सरकार द्वारा महिलाओं को समाज की मुख्यधारा मे जोडने के लिए उनके लिए अनेक कार्यक्रम व योजनाए चलाई जाती है किंतु वे सिर्फ सरकारी आकडों मे सिमटकर रह जाती है समाज एवं महिलाओं द्वारा उन्हे अपना नही माना जाता है और वे सिर्फ सरकारी योजना बनकर रह जाती है।

आज आवश्यकता इस बात की है कि लोगो को अर्थात समाज को यह एहसास हो कि महिलाए भी समाज का अभिन्न हिस्सा है इनकों मुख्यधारा मे शामिल किए बगैर हम समाज के विकास की कल्पना भी नही कर सकते है। सरकार द्वारा कुछ ऐसे कदम उठाए गए है जो कि निश्चित रूप से महिला सशक्तिकरण हेतु सराहनीय है उदाहरण स्वरूप जैसे यदि हम सरकारी योजनाओं में मनरेगा की बात करे तो महिलाओं को प्रसूति सुविधा, कार्यस्थल की सुविधा, कार्यक्षेत्र मे बनी कार्य हेतु निगरानी समिती बनाई गई है कि जो यह देखेगी कि महिलाओं को कार्य के दौरान किसी प्रकार की तकलीफ तो नही हो रही है। इसी तरह से महिला एवं बाल विकास विभाग तथा स्वास्थ विभाग की गर्भवती माता एवं शिशु के लिए चलाई जा रही योजनाए जैसे जननी सुरक्षा, प्रसूति सहायता, कुपोषित बच्चों हेतु एन.आर.सी सेंटर सुविधा, लडकियों हेतु लाडली लक्ष्मी योजना , गाव की बेटी आदि ऐसी ही अन्य योजनाओं मे भी सरकार ने संवेदनशीलता दिखाई है और अब अपनी सोच का दायरा बढाया है निश्चित रूप से समय के साथ सरकार व शासन प्रशासन मे महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता बढी है जो कि समाज मे महिलाओं की स्थिती को मजबूत करने हेतु अधिक कारगर सिद्व होगी वैसे कही न कही पुरूष समाज भी इस बात को समझ चुका है कि महिलाओं को नजर अंदाज कर कोई भी देश अथवा समाज तरक्की नही कर सकता है। यदि हमें देश का सर्वागीण विकास करना है तो महिलाओं को विकास की मुख्य धारा में लाना ही होगा, साथ ही अपनी मानसिकता मे बदलाव लाने की भी आवश्यकता होगी क्योंकि यदि हम जैसे नजरिया रखते है हमारी आने वाली पीढी भी उसका अनुसरण करेगी और समाज की दशा और दिशा तय करेंगे।





  अनुक्रमणिका  
नीलेश राय,
संकाय सदस्य, जबलपुर
लोक सेवा गारंटी - सुशासन की नयी पहल

लोक सेवाओं के प्रदान की गारंटी नागरिक अधिकारों को सशक्त बनाने का प्रयास है। अब चिन्हित सेवाओं को प्राप्त करने के लिये आमजन को किसी की इच्छा पर निर्भर नहीं रहना पडे़, इसके लिये 16 विभागों की 52 सेवाएँ अधिसूचित की गई है। इस कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये ‘‘लोक सेवा प्रबंधन विभाग’’ का गठन किया गया है।

  • इस कानून के तहत इन सेवाओं को प्रदान करने के लिये निश्चित समय सीमा निर्धारित की गई है। इस समय सीमा में पदाभिहित अधिकारी को यह सेवा प्रदान करनी होगी।
  • समय सीमा में कार्य करने अथवा अनावश्यक कारणों से विलम्ब करने वाले अधिकारी कर्मचारियों को दण्ड देने का प्रावधान है।
  • दोषी अधिकारी-कर्मचारी पर 250 रूपये से लेकर 5000/- तक के दण्ड की व्यवस्था की गई है। दंड के रूप में मिलने वाली राशि पीडि़त व्यक्ति को क्षतिपूर्ति के रूप में दी जा सकेगी।
आवेदन प्रक्रिया एवं अभिस्वीकृति जारी किया जाना -

चिन्हित सेवाओं के लिये जनसामान्य को किस अधिकारी को आवेदन पत्र देना है, उसका कार्य पूरा करने के लिये कितने दिन निश्चित हैं आदि का स्पष्ट प्रावधान इस कानून के तहत किया गया है। एक्ट के तहत अधिसूचित 16 विभागों के कार्यालयों में पदाभिहित अधिकारी बनाए गए है। जो कि निश्चित समय सीमा में सेवा प्रदान करने के लिये उरदायी है। सेवा चाहने वाले व्यक्ति को संबंधित पदाभिहित अधिकारी के पास समस्त आवश्यक दस्तावेजों के साथ आवेदन करना होगा। पदाभिहित अधिकारी आवेदन प्राप्त करने तथा पावती देने के लिये अपने अधीनस्थ अधिकारी अथवा कर्मचारी को अधिकृत कर सकेगा। नियम 3 के अधीन प्राधिकृत व्यक्ति आवेदक को प्रारूप-1 में अभिस्वीकृति देगा। जिसमें निश्चित की गई समय सीमा का उल्लेख (अवकाश दिवस को छोडकर) किया जाएगा। यदि आवश्यक दस्तावेज संलग्न नहीं किये गए है, तो उसका स्पष्ट उल्लेख अभिस्वीकृति में किया जाएगा तथा समय सीमा का उल्लेख नहीं किया जावेगा।

अपील प्रक्रिया -

आवेदक को समय सीमा में सेवा नहीं दी जाती है या सेवा प्रदान करने से इन्कार किया जाता है अथवा उसका आवेदन नामंजूर किया जाता है, तो आवेदक प्रथम अपील अधिकारी, द्वितीय अपील प्राधिकारी या पुनरीक्षण अधिकारी को यथास्थिति अपील कर सकता है। अपील या पुनरीक्षण के आवेदन में निम्नलिखित जानकारी सम्मिलित की जाएगी -

  1. अपीलार्थी या पुनरीक्षण चाहने वाले व्यक्ति का नाम पता।
  2. यथास्थिति उस पदाभिहित अधिकारी, प्रथम अपील अधिकारी अथवा द्वितीय अपील प्राधिकारी का नाम और पता जिसके विनिश्चय के विरूद्ध अपील अथवा पुनरीक्षण प्रस्तुत किया गया है।
  3. जिस आदेश के विरूद्ध अपील अथवा पुनरीक्षण किया जा रहा है स्वप्रमाणित प्रति।
  4. अपील अथवा पुनरीक्षण के आवेदन में उल्लेखित दस्तावेजों की प्रतियाँ।
  5. अपील अथवा पुनरीक्षण के आवेदन के साथ संलग्न दस्तावेजों की अनुक्रमणिका।
  6. अपील तथा पुनरीक्षण के आधार।
  7. चाही गई राहत।
  8. पुनरीक्षण के आवेदन की दशा में शास्ति जमा किये जाने का सबूत ऐसे सबूत के बिना पुनरीक्षण के लिये प्रस्तुत किया गया है। कोई आवेदन सुनवाई हेतु ग्राह्य नहीं किया जाएगा।
अपील अथवा पुनरीक्षण की प्रक्रिया -

प्रथम, द्वितीय अपील प्राधिकारी अथवा पुनरीक्षा अधिकारी द्वारा -

  1. सुसंगत दस्तावेजों, लोक अभिलेखों या उनकी प्रतियों का निरीक्षण किया जावेगा।
  2. यदि आवश्यक हो तो जांच अधिकारी को नियुक्त किया जा सकेगा।
  3. पदाभिहित अधिकारी या प्रथम अपील अधिकारी को पुनरीक्षण के समय सुना जा सकेगा।
सुनवाई की सूचना की तामील:-

अपील अथवा पुनरीक्षण आवेदन की सुनवाई की सूचना निम्नलिखित में से किसी एक रीति में तामील की जा सकेगीः-

  1. स्वयं पक्षकार द्वारा
  2. आदेशिका वाहक के माध्यम से दस्ती परिदान द्वारा
  3. रजिस्ट्रीकरण डाक द्वारा
  4. विभाग के माध्यम से

अपीलार्थी या पुनरीक्षणकर्ता को सुनवाई की तारीख से 7 दिवस पूर्व सूचित किया जाएगा। अपीलार्थी या पुनरीक्षणकर्ता स्वयं उपस्थित होगा या उपस्थित न होने का विकल्प ले सकेगा। यदि पक्षकार सूचना की तामील के पश्चात सुनवाई के लिये अनुपस्थित रहता है तो यथास्थिति अपील या पुनरीक्षण का आवेदन उसकी अनुपस्थिति में निपटारा किया जा सकेगा या खारिज किया जा सकेगा। अपील अथवा पुनरीक्षण आदेश लिखित में होगा।

  • प्रथम अपील आदेश की प्रति अपीलार्थी तथा पदाभिहित अधिकारी को दी जावेगी।
  • द्वितीय अपील आदेश की प्रति अपीलार्थी, पदाभिहित अधिकारी तथा प्रथम अपील अधिकारी को दी जावेगी।
  • शास्ति अधिरोपित किये जाने की दशा में आदेश की प्रति-
  1. आहरण व संवितरण अधिकारी को वेतन से वसूली के लिये
  2. कोषालय को तथा
  3. अनुशासनिक अधिकारी को दी जावेगी।
  • यथास्थिति पदाभिहित अधिकारी या प्रथम अपील अधिकारी के विरूद्ध विभागीय जांच की अनुशंसा किये जाने की दशा में संबंधित अनुशासनिक अधिकारी को प्रति दी जावेगी।
अपील की समय सीमा -
प्रथम अपील - आवेदन नामंजूर होने की तारीख से अथवा निश्चित की गई समय सीमा के अवसान से 30 दिन के भीतर।
द्वितीय अपील - प्रथम अपील अधिकारी के विनिश्चय के विरूद्ध द्वितीय अपील अधिकारी को ऐसे विनिश्चय की तारीख से 60 दिन के भीतर।
पुनरीक्षण - राज्य सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट अधिकारी को द्वितीय अपील अधिकारी के विनिश्चय के विरूद्ध ऐसे विनिश्चय की तारीख से 60 दिन के भीतर।

परन्तु यदि प्रथम अथवा द्वितीय अपील प्राधिकारी अथवा नामनिर्दिष्ट अधिकारी को यह समाधान हो जाता है, कि अपीलार्थी समय के भीतर अपील करने में पर्याप्त कारणों से प्रतिरत रहा था तो वह कालावधि के अवसान हो जाने के पश्चात भी अपील स्वीकृत कर सकता है।

शास्ति -

यदि प्रथम अपीलीय अधिकारी यह पाता है कि आवेदक द्वारा समस्त अपेक्षाओं की पूर्ति करने के बावजूद पदाभिहित अधिकारी द्वारा निश्चित की गई समय सीमा के भीतर सेवा उपलब्ध नहीं कराई गई है या बिना कारण आवेदन रद्द कर दिया गया है तो वह द्वितीय अपील प्राधिकारी को पदाभिहित अधिकारी पर शास्ति अधिरोपित करने हेतु सिफारिश कर सकेगा। जहाँ द्वितीय अपील प्राधिकारी की राय है कि पदाभिहित अधिकारी बिना पर्याप्त कारण से सेवा प्रदान करने में असफल रहा वह न्यूनतम 500/- तथा 5000/- अधिकतम शास्ति अधिरोपित करेगा। सेवा प्रदान करने में विलम्ब होने की दशा में 250/- प्रतिदिन तथा अधिकतम 5000/- की शास्ति अधिरोपित कर सकेगा। जहाँ द्वितीय अपील प्राधिकारी की राय है कि प्रथम अपील अधिकारी बिना पर्याप्त तथा युक्तियुक्त कारण से निश्चित समय सीमा में अपील का विनश्चय करने में असफल रहा है तो वह प्रथम अपील अधिकारी पर ऐसी शास्ति अधिरोपित कर सकेगा यह न्यूनतम 500/- रू. अधिकतम 5000/-रू. तक की होगी। राज्य सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट अधिकारी यथास्थिति प्रथम अपील अधिकारी या पदाभिहित अधिकारी को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात 5000/-रू. तक की शास्ति अधिरोपित कर सकेगा तथा संबंधित अधिकारी के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की सिफारिश कर सकेगा। इसके अतिरिक्त यदि नामनिर्दिष्ट अधिकारी का यह समाधान हो जाता है, कि द्वितीय अपील प्राधिकारी ने अपर्याप्त शास्ति अधिरोपित की है या कार्यवाही लंबित रखी है, तो वह सुनवाई का अवसर देने के पश्चात उस पर 5000/-रू. तक की शास्ति तथा अनुशासनात्मक कार्यवाही की सिफारिश कर सकेगा।

शास्ति की वसूली -

आहरण एवं संवितरण अधिकारी शास्ति अधिरोपित किये जाने के आदेश की प्रति प्राप्त होने पर यथास्थिति पदाभिहित अधिकारी या प्रथम अपील अधिकारी के आगामी वेतन से शास्ति की राशि वसूल करेगा और उसे शीर्ष 0070 (60) (800) में जमा करेगा तथा चालान की एक प्रति संबंधित द्वितीय अपील प्राधिकारी को भेजेगा।





  अनुक्रमणिका  
प्राचार्य,
ई.टी.सी., उज्जैन
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीवका मिशन - एक परिचय

एनआरएलएम एक केन्द्रीय प्रायोजित योजना है और कार्यक्रम का वित्तपोषण केन्द्र और राज्यों के बीच 75:25 के आधार पर किया जायेगा।

  • एनआरएलएम में चरणबद्ध कार्यान्वयन का दृष्टिकोण अपनाया जायेगा। 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक सभी जिलों और ब्लाकों में एनआरएलएम का विस्तार हो जायेगा।
  • एनआरएलएम ने देश में 600 जिलों, 6000 ब्लाकों, 2.5 लाख ग्राम पंचायतों, 6.0 लाख गावों में 7 करोड़ बीपीएल परिवारों को उनके स्वतः प्रबंधित एसएचजी तथा उनके परिसंघों और आजीवका क्रियाकलापों में सहायता देकर उन्हे एकजुट करने का एजेण्डा निर्धारित किया है।
  • एनआरएलएम कवरेज में पूर्णता लाने के लिये संस्थाओं, गैर सरकारी संगठनों, सिविल सोसायटी संगठनों तथा विभागों के साथ भागीदारी करेगा।
तीन प्रमुख आधार:
  • गरीबों के लिये विधमान आजीवका विकल्पों में वृद्धि करना।
  • बाहरी क्षेत्र में रोजगार के अनुसार उनका कौशल विकास करना।
  • स्व-रोजगार तथा उधमशीलता (माइक्रो उधमों के लिये) को प्रात्साहित करना।
मिशन:

‘‘गरीब परिवारों को उपयोगी स्व-रोजगार एवं कौशल आधारित मजदूरी के अवसर उपलब्ध कराकर निर्धनता कम करना, ताकि गरीबों की मजबूत बुनियादी संस्थाओं के माध्यम से उनकी जीविका को स्थायी आधार पर बेहतर बनाया जा से।‘‘

सिद्धान्त:

गरीबों में गरीबी से निजात पाने की तीव्र इच्छा होती है और इस संबंध में उनमें क्षमता भी होती है।

  • गरीबों की क्षमता के उपयोग के लिये सामाजिक एकजुटता तथा मजबूत संस्थागत प्रयास महत्वपूर्ण है।
  • समाजिक एकजुटता, संस्थागत निर्माण तथा अधिकारों के उपयोग (सशक्तिकरण) के लिये एक बाहरी समर्पित एवं संवेदनषील सहायता संरचना आवश्यक है।
विशेष सहयोग:

अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों जैसे अधिक उपेक्षित वर्गों, खासकर उपेक्षित जनजातियों समूहों, एकल महिला और महिला प्रमुख परिवारों,

विकलांगों,भूमिहीनों, पलायन किए गए श्रमिकों और अलग-अलग पडे़ क्षेत्रों में रहने वाले इक्का-दुक्का समुदायों पर विशेष ध्यान दिया जायेगा।

विशेषताऐं:
व्यापक सामाजिक जनजागरणः
  • प्रत्येक ग्रामीण परिवार के कम से कम महिला सदस्य को समयबद्ध रूप से स्व-सहयता समूह में शामिल किया जाऐगा।
  • बीपीएल परिवारों को शत्प्रतिशत शामिल करते हुये यह ध्यान रखा जायेगा कि 50 प्रतिशत लाभार्थी अनुसूचित जाति/जनजाति के हों 15 प्रतिशत अल्पसंख्यक हों तथा 3 प्रतिशत विकलांग हों।
  • जन संस्थाओं को बढ़ाना:
  • समुदाय आधारित समूह-संगठनों के गठन एवं मजबूती के प्रयास किये जायेंगे-
  • स्व-सहायता समूह, स्व-सहायता समूहों के ग्रामस्तरीय एवं उच्च स्तरीय परिसंघों को बनाकर उनको मजबूती प्रदान करना।
  • स्व-सहायता समूह, उनके विभिन्न स्तरों के परिसंघ, उत्पादकों के समूह, सहकारी संस्थाओं के निर्माण और उनकी मजबूती से उनकी जानकारी, वित्तीय सहयोग की उपलब्धता, बाजार आदि तक पहुंचे।

इन संस्थाओं की मजबूती एवं बेहतर परिणामों के लिये गैर सरकारी संगठनों, शिक्षण प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण से जुड़ी संस्थाओं का सहयोग।





  अनुक्रमणिका  
पंकज राय
संकाय सदस्य, जबलपुर
सफलता की कहानी

रतलाम जिले की जनपद पंचायत रतलाम की ग्राम पंचायत सरवड़ जो रतलाम बदनावर मार्ग पर रतलाम से 30 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। ग्राम पंचायत सरवड़ के कृषक हितग्राही नंदलाल पिता मंगला के पास दो हेक्टेयर असिंचित कृषि भूमि थी किन्तु उक्त कृषि भूमि पर सिंचाई का साधन नहीं होने से वहाँ केवल वर्षाकालीन एक फसल ज्वार या मक्का ही ले पाता था एवं उससे होने वाली आय से ही उसके परिवार की आजीविका चलाना बहुत मुश्किल था। उसके दो छोटे-छोटे बच्चे थे, जिनका शिक्षण अभी प्रारम्भ ही हुआ था। एक दिन जब वह ग्राम पंचायत सरवड़ में प्रमाण-पत्र बनवाने गया तो उसे सहायक विकास विस्तार अधिकारी श्री चौहान द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत कपिलधारा कूप निर्माण के संबंध में जानकारी प्राप्त हुई।

उसे बताया गया कि वह भी इस योजना के अंतर्गत अपनी भूमि पर कपिलधारा कूप का निर्माण करवाकर अपनी आजीविका में वृद्धि कर सकता है। साथ ही चार माह के खाली समय में उसे मजदूरी के रूप में भी राशि प्राप्त हो सकती है। उसने अपना आवेदन ग्राम पंचायत के माध्यम से जनपद पंचायत रतलाम के कार्यालय में पहुंचाया। लगातार संपर्क करने पर उसे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत 80 हजार रूपये की लागत से कूप निर्माण हेतु स्वीकृति प्राप्त हुई। जिसकी ग्राम पंचायत द्वारा प्रशासकीय स्वीकृति प्राप्त होते ही

उसके द्वारा अपने खेत पर कूप निर्माण खुदाई का कार्य प्रारम्भ कर दिया। उसके परिवार के अन्य सदस्य जो जाबकार्ड धारी थे एवं उसके समान ही अन्य कृषि कार्यो में मजदूरी करने वाले जाबकार्ड धारी साथियों की मदद से उसने कपिलधारा कूप का निर्माण प्रारम्भ कर दिया। प्राप्त 80 हजार की लागत का 60 प्रतिशत मजदूरी पर एवं 40 प्रतिशत राशि सामग्री पर व्यय की गई। चार माह की अवधि में 80 हजार की लागत से उसका कूप निर्माण तैयार हो गया जिसमें 20 से 25 फूट पर पानी निकल आया वर्षाकाल में कूप पानी से भर गया अब वह अपने खेत में खरीफ में जेएस 335 किस्म की सोयाबीन की नगद फसल एवं ज्वाला मिर्च नगद फसल की बोवनी कर उन्नत कृषि प्रारम्भ की।

बदनावर मंडी में उसे सोयाबीन 12 क्विंटल का विक्रय 2000 रू. प्रति क्विंटल की दर से किया एवं मिर्च उत्पादन का विक्रय 80 से 100 रूपये क्विंटल की दर से विक्रय कर अपनी आय में वृद्धि की जिससे वह गरीबी की रेखा से उपर आने में सफल हुआ। वह शासन को इस योजना हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद देते हुए कहता है कि जैसा मेरा जीवन सफल हुआ है अन्य कृषक भी मेरे समान योजना का लाभ लेकर सफल हो सकते है।





  अनुक्रमणिका  
सुधीर द्रविड़
संकाय सदस्य, ई.टी.सी. उज्जैन
क्षेत्रीय ग्रामीण विकास प्रशिक्षण केन्द्र उज्जैन में आयोजित पंच परमेश्वर योजनांतर्गत ग्राम पंचायत सचिव का प्रशिक्षण

महात्मा गांधी राज्य ग्रामीण विकास संस्थान, जबलपुर के निर्देशों के अनुरूप क्षेत्रीय ग्रामीण विकास प्रशिक्षण केन्द्र, उज्जैन को पंच परमेश्वर योजना अंतर्गत ग्राम पंचायत के सचिवों के प्रशिक्षण कार्य का दायित्व सौंपा गया जिसके अंतर्गत प्रथम चरण भाग-1 संरचना, आधार एवं संचार, भाग-2 पेयजल स्वच्छता एवं कल्याणकारी योजना, भाग-3 मनरेगा अंतर्गत किये जाने वाले कार्य एवं राज्य आजीविका परियोजना व लेखा प्रशिक्षण किया जाना है।

जिसमें क्षेत्रीय ग्रामीण विकास प्रशिक्षण केन्द्र, उज्जैन क्षेत्रांतर्गत शामिल उज्जैन, देवास, रतलाम, शाजापुर, नीमच, मंदसौर के कुल 2756 प्रतिभागी है। संस्थान के द्वारा दिनांक 03-07 जून 2013 में पंच परमेश्वर योजनांतर्गत पंचायत सचिवों का प्रथम चरण का प्रशिक्षण आयोजित किया गया जिसमें नामांकित प्रतिभागी 40 में से 30 प्रतिभागी प्रशिक्षण में उपस्थित हुए। प्रतिभागियों को पंच परमेश्वर प्रशिक्षण के उदेश्य के अनुसार ग्रामसभा का सफल आयोजन, आदर्श ग्राम पंचायत, पंचायत राज अधिनियम 1993 की विशेषताएं योजना का प्रारूप तैयार करना, ग्राम पंचायत की लेखा प्रणाली एवं लेखा नियम 1999 के प्रावधान ई पंचायत आदि विषयों पर विस्तृत रूप से विषय विशेषज्ञ द्वारा प्रशिक्षण दिया गया।

प्रशिक्षण पश्चात् पंचायत सचिवों द्वारा अपने दायित्वों के निर्वहन मे होने वाली त्रुटियों में सुधार हुआ एवं सभी अपने दायित्वों का निर्वहन समय व सही प्रकार से कर सकने में सक्षम हो सकेंगे।

  अनुक्रमणिका  
प्रकाशन समिति

संरक्षक एवं सलाहकार
  • श्रीमती अरुणा शर्मा(IAS),अपर मुख्य सचिव,
    म.प्र.शासन,पं.एवं ग्रा.वि.वि.,
  • श्री राजेश राजौरा(IAS),सचिव,म.प्र.शासन,पं.एवं ग्रा.वि.वि.


प्रधान संपादक

निलेश परीख,
संचालक,
महात्मा गांधी राज्य ग्रामीण विकास संस्थान-म.प्र., जबलपुर


सह संपादक
संजीव सिन्हा, उप संचालक, म.गां.रा.ग्रा.वि.स.-म.प्र., जबलपुर

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