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त्रैमासिक - ग्यारहवाँ संस्करण (तृतीय वर्ष) अप्रैल, 2013
अनुक्रमणिका हमारा संस्थान
  1. वित्तीय साक्षरता पर क्रियान्वयकों एवं प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण
  2. अपनी बात ....
  3. पेसा अधिनियम 1996
  4. वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोत
  5. मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज 1993 (क्रमांक 1 सन् 1994) के प्रावधानों में किये गये महत्वपूर्ण संशोधन
  6. पेटलावद का टमाटर दिल्ली तक
  7. शिक्षा है महिला सशक्तिकरण का रहस्य
  8. पंच परमेश्वर योजनांतर्गत पंचों के प्रशिक्षण हेतु प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण

वित्तीय साक्षरता पर क्रियान्वयकों एवं प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण

राज्य आजीविका फोरम, भोपाल द्वारा प्रायोजित एवं महात्मा गांधी राज्य ग्रामीण विकास संस्थान द्वारा आयोजित ‘‘वित्तीय साक्षरता’’ विषय पर क्रियान्वयकों एवं प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण में मध्यप्रदेश के लगभग सभी जिलों के 1529 प्रतिभागियों को 58 प्रशिक्षण सत्रों के माध्यम से प्रशिक्षण प्रदान किया गया। इस तीन दिवसीय प्रशिक्षण सत्र में जिला स्तर पर मध्यप्रदेश राज्य ग्रामीण

आजीविका मिशन एवं जिला गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत कार्यरत सदस्य सलाहकार, जिला प्रबंधक को प्रशिक्षण हेतु नामांकित किया गया था।

प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों मे गठित स्वसहायता समूहों को बैंको से संबंध स्थापित करते हुए समूहों के आर्थिक पक्ष को कैसे मजबूत किया जा सकता है, स्वसहायता समूहों के आय के स्त्रोत बढाना साथ ही बैंक लिंकेज, बैंक से ऋण प्राप्त करना, समय पर ऋण वापसी आदि रहा।

इस प्रशिक्षण में संस्थान के संचालक, उपसंचालक, राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन/जिला गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम, भोपाल, सेंट्रल बैंक आफ इंडिया भोपाल के सहायक महाप्रबंघक एवं अतिथी वक्ताओं के द्वारा प्रशिक्षणों में आवश्यक सहयोग एवं मार्गदर्शन दिया गया।

  अनुक्रमणिका  
पेसा अधिनियम 1996
अपनी बात .....


‘‘पहल‘‘ का यह अंक नए एवं रूचिकर आलेख के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की उपलब्धियां, कार्यक्रमों, अधिनियमों में आए संशोधन, ग्रामीण क्षेत्र में आ रहे बदलावों पर केन्द्रित सफलता की कहानियां, प्रशिक्षण से संबंधित नए समाचार, इत्यादि का समावेश करते हुए ‘‘पहल‘‘ के अंकों का प्रकाशन किया जाता है। हम सदैव यह प्रयास करते हैं कि संस्थान एवं क्षेत्रीय प्रशिक्षण केन्द्रों के संकाय सदस्यों तथा विषय विशेषज्ञों के आलेखों को ‘‘पहल‘‘ में शामिल करें जो एक बुद्धिजीवी के रूप में उनकी छवि स्थापित करने में मदद कर सके। अभी तक ‘‘पहल‘‘ के अंकों को प्रकाशित करने में जिन सहयोगियों ने अपने आकर्षक लेख हमें भेजे हैं, उन सबका धन्यवाद!!

इस अंक में म.प्र. पंचायतराज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 के प्रावधानों में किए गए महत्वपूर्ण संशोधन, वैकल्पिक ऊर्जा के स्त्रोत जैसे समसामायिक विषय सम्मिलित किए गए हैं।

आशा है आपको यह अंक पसंद आएगा।



निलेश परीख
संचालक

पेसा केन्द्र सरकार द्वारा लागू किया गया कानून है। जिसका पूरा नाम ‘‘अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतराज अधिनियम - 1996‘‘ है। इसे दिसम्बर 1996 में सम्पूर्ण भारत में लागू किया गया था और अनुलग्नक-V में अनुसूचित क्षेत्रों की अधिकता वाले राज्यों को एक साल की समयसीमा में अपने-अपने राज्यों में लागू करने के निर्देश दिए गए थे।

2011 की जनगणना के आधार भारत की अनुसूचित जनजाति की कुल जनसंख्या 8.36 करोड़ है, जो देश की कुल जनसंख्या का 8.10 प्रतिशत है । कानूनी तौर पर आदिवासी लोग वे होते हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 342 में उल्लेखित समुदाय या जातियों से संबंधित होते हैं।

भारतीय संविधान में अनुसूचित जाति को दिए गए विशेष संरक्षण के बावजूद भी अनुसूचित जनजातियों की स्थिति आज भी बहुत पिछड़ी हुई है। मानव विकास के सूचकांकों विशेषत:, स्वास्थ्य और आय में इन जनजातियों की स्थिति बहुत पिछड़ी है।

पेसा एक अतिविशिष्ट कानून है, जो अनृसृची-5 क्षेत्रों में ग्राम सभा को विशेष अधिकार प्रदान करके अनुसूचित समुदाय को स्थानीय स्व-शासन हेतु शक्ति सम्पन्न बनाता है। अनुसूचित क्षेत्रों की जीवन रेखा माने जाने वाले प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन हेतु अधिकारों को इस कानून में विषेष मान्यता प्रदान की गई है।

73वें एवं 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के अनुच्छेद 243-एम के अंतर्गत एक विशेष प्रावधान के अनुसार ये संशोधन अधिनियम स्वतः ही अनुसूचित और आदिवासी क्षेत्रों में लागू नहीं माने जाऐंगे। इसके आधार पर यह संसद का उत्तरदायित्व है, कि वह अनुसूचित और आदिवासी क्षेत्रों में स्व-शासन के लिए संस्थागत ढांचे का प्रावधान करेगी। इसका अर्थ यह है, कि 5वीं और 6वीं अनुसूची के अंतर्गत अनूसूचित और आदिवासी क्षेत्रों में राज्यपाल द्वारा इस अधिनियम को लागू करने की शक्ति संसद में निहित हैं। इस उत्तरदायित्व को पूरा करने के लिए संविधान के भाग 09 के प्रावधानों पर अनुशंसा देने हेतु संसद द्वारा सांसदों और विशेषज्ञों की एक समिति बनाई गई। इन अनुशंसाओं के आधार पर संसद ने 24 दिसम्बर, 1996 को ‘‘अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतराज अधिनियम - 1996‘‘ लागू कर दिया।



प्रवीण सिंह,
संकाय सदस्य, पचमढ़ी


अनुक्रमणिका  
वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोत

आज के इस दौर में जहाँ सभी काम कम्प्यूटर के माध्यम से हो रहे है, और सभी विभाग एवं कामों को कम्प्यूटर से जोड़ जा रहा है, वहीं ऊर्जा का उपयोग अपने आप में ही बढ़ जाता है। बिना बिजली के हम कोई भी काम नहीं कर सकते है। अतः आजकल ऊर्जा के बिना काम करना न केवल मुश्किल है बल्कि आने वाले समय में नामुमकिन है। आज के दौर में ऊर्जा संकट एक बहुत बड़ा संकट उभर कर सामने आ रहा है, जिससे निपटने हेतु शासकीय, सामाजिक एवं व्यक्तिगत स्तर पर विभिन्न प्रयोग चल रहे है। जिससे हम आने वाले समय के उत्पन्न होने वाले ऊर्जा संकट से निपट सके।

हमारे विभिन्न ऊर्जा स्त्रोत -
1. सौर ऊर्जा -

फोटो वोल्टेक सेल द्वारा सौर ऊर्जा से उत्पन्न बिजली सौर पेनल द्वारा उत्पन्न ऊर्जा है। जिसमें सोलर पेनल में फोटो वोल्टेक सेल होते है। जिनके द्वारा ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है। यह ऊर्जा संकट से निपटने हेतु एक अक्षय ऊर्जा स्त्रोत है। गांव एवं शहर में उत्पन्न ऊर्जा आसानी से पहुंचाया जा सकता है।

2. पवन ऊर्जा -

पवन ऊर्जा वह अक्षय ऊर्जा स्त्रोत है जिसमें पवन चक्की द्वारा टरबाईन को चलाकर बिजली बनाई जा सकती है। इसका उदाहरण हमें देवास जिले की पहाडि़यों में देखने को मिलता है। जहाँ पवन चक्की के माध्यम से बिजली उत्पन्न किया जा रहा है।

3. न्यूक्लियर ऊर्जा -

परमाणु संयत्र स्थापित कर के न्यूक्लियर ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। इस श्रृंखला में मध्यप्रदेश में मंडला जिले के चुटका परमाणु परियोजना है। जहाँ परमाणु संयत्र में विद्युत उत्पादन का कार्य शुरू कराया जा रहा है। विद्युत संकट से जूझते म.प्र. को बिजली उपलब्ध कराने हेतु यह एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम योजना है। जिसमें परमाणु ऊर्जा से टरबाईन चला कर बिजली उत्पन्न किया जाएगा।

4. सामुद्रिक ऊर्जा -

विदेशों में समुद्र की ऊर्जा द्वारा बिजली उत्पन्न करने का काम भी किया जा रहा है। इस पद्धति में समुद्र की लहरों का उपयोग करके बिजली का उत्पादन किया जा रहा है।

5. जियो थर्मल ऊर्जा -

प्रथम जियो थर्मल ऊर्जा से विद्युत उत्पादन लार्डडरलो इटली में बनाया गया। इस के अंतर्गत भूगर्भ ऊर्जा द्वारा ऊर्जा उत्पन्न किया जाता है। अमेरिका जैसे विकसित देशों में जहां गर्म पानी के स्त्रोत (अलास्का एवं हवाई द्वीप) पर स्थित है। वहाँ कुएँ खोदकर उत्पन्न भाप द्वारा टरबाईन को चलाकर विद्युत उत्पादन किया जा रहा है।

6. बायोगैस ऊर्जा -

बायोगैस ऊर्जा ईधन एक ज्वलनशील पदार्थ है। गोबर खाद, अपशिष्ट, मानवमल को एकत्रित कर उत्पादित गैस द्वारा ईधन एवं विद्युत उत्पादन किया जा सकता है। ऊर्जा प्राप्ति के पश्चात् शेष बचे अपशिष्ट (Slurry) से जैविक खाद का निर्माण कर खेतों में उपयोग लाया जा सकता है। यह जैविक खाद पैदावार बढ़ाने हेतु बेहद लाभदायक है। एक गाय द्वारा किये गये एक दिन के गोबर से तीन किलोवाट घंटे की विद्युत उत्पादन किया जा सकता है। वही सामान्यतः 2-4 किलोवाट विद्युत का उपयोग एक सामान्य परिवार में 100 वाट की बल्ब द्वारा प्रतिदिन किया जा सकता है।

बायोगैस को बायोगैस अपग्रेडर पद्धति द्वारा प्राकृतिक गैस के समकक्ष लाया जा सकता है। इसमें बायोगैस को एक साफ पानी की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। उस बायोगैस को बायोमिथेन बनाया जा सकता है। इसे कन्सट्रेट और कम्प्रेस करने पर वाहनों में भी प्रयोग किया जा सकता है।





  अनुक्रमणिका  
अभिषेक नागवंशी,
संकाय सदस्य, ई.टी.सी. उज्जैन
मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज 1993 (क्रमांक 1 सन् 1994) के प्रावधानों में किये गये महत्वपूर्ण संशोधन

मध्यप्रदेश में पंचायतराज व्यवस्था ‘‘मध्यप्रदेश पंचायतराज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 (क्रमांक 1 सन् 1994)’’ के अनुसार चल रही है। अधिनियम में समय-समय पर आवश्यकता के आधार पर संशोधन किये जाते रहे हैं। इन्ही संशोधनों की श्रंखला में मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज (संशोधन) अधिनियम, 2011 बनाया गया जिसे मध्यप्रदेश राजपत्र, भोपाल दिनांक 10 अगस्त 2011 में प्रकाशित किया गया। इसके बाद मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज (संशोधन) अधिनियम, 2012 बनाया गया है जिसे मध्यप्रदेश राजपत्र, भोपाल दिनांक 23 मई 2012 में प्रकाशित किया गया है। इन दोनों राजपत्रों के अनुसार प्रमुख संशोधन इस प्रकार हैं -

पंचायतों के लेखाओं की संपरीक्षा और सामाजिक संपरीक्षा संबंधी
प्रावधान -

मूल अधिनियम की में धारा 129 की उपधारा 1 में पंचायतों के लेखाओं की संपरीक्षा करने के लिए राज्य शासन के नियंत्रणाधीन एक पृथक् तथा स्वतंत्र संपरीक्षा संगठन होने की व्यवस्था, उपधारा 2 में संपरीक्षा संगठन में नियुक्त अधिकारी तथा सेवक राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किये जाने तथा उपधारा 3 में पंचायतों के लेखाओं की संपरीक्षा, संदाय की जाने वाली संपरीक्षा फीस और ऐसी संपरीक्षा रिपोर्ट पर कार्यवाही की रीति से संबंधित प्रावधान थे।

मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज (संशोधन) अधिनियम, 2011 के अनुसार मूल अधिनियम की धारा 129 को अलग करते हुये धारा 129 (1 एवं 2) स्थापित की गई। उपधारा धारा 129 (1) में, पंचायतों के लेखाओं की संपरीक्षा, संचालक, स्थानीय निधि संपरीक्षा द्वारा किये जाने का प्रावधान किया गया, इस उपधारा यह भी उल्लेख किया गया कि, भारत के नियंत्रक तथा महालेखाकार पंचायतों की संपरीक्षा का तकनीकी मार्गदर्शन करेंगे तथा उसका पर्यवेक्षण करेंगे। उपधारा 129 (2) में, पंचायतों की, संचालक, स्थानीय निधि संपरीक्षा की, वार्षिक संपरीक्षा रिपोर्ट के साथ भारत के नियंत्रक तथा महालेखाकार की वार्षिक तकनीकी निरीक्षण रिपोर्ट राज्यपाल को प्रस्तुत की जाएगी, जो उक्त रिपोर्ट को विधान सभा के पटल पर रखवाएंगे।

मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज (संशोधन) अधिनियम, 2012 बनाया गया है जिसे मध्यप्रदेश राजपत्र, भोपाल दिनांक 23 मई 2012 में धारा 129 (पंचायतों की संपरीक्षा) का संशोधन किया गया। मूल अधिनियम की धारा 129 में की उपधारा 1 और 2 में पंचायतों के लेखाओं की संपरीक्षा, स्थानीय निधि संपरीक्षा द्वारा किये जाने के संबंध में सामाजिक संपरीक्षा, ग्राम सभा द्वारा की जाएगी’’।

धारा 2 (परिभाषा) का संशोधन -

अधिनियम की धारा 2 में परिभाषाएं दी गई हैं। इस धारा में कुल एक से तीस तक खण्डों का उल्लेख किया गया है। जिसके खण्ड (चैबीस), के पश्चात चैबीस - क, ख और ग खण्ड जोड़े गये हैं। उपखण्ड ‘‘(चैबीस - क) में संकल्प को पारिभाषित किया गया है। ‘‘संकल्प से अभिप्रेत है, इस अधिनियम के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए, पंचायतों की बैठक में पारित और कार्यवाही रजिस्टर में वर्णित किया गया संकल्प’’ है। उपखण्ड ‘‘(चैबीस - ख’’) में सचिव की परिभाषा इस रूप में की गई है:- ‘‘सचिव’’ से अभिप्रेत है, ग्राम पंचायत, ग्राम सभा या ग्राम पंचायत या ग्राम सभा की किसी समिति का सचिव या सहायक सचिव और उपखण्ड (चैबीस-ग) में सामाजिक संपरीक्षा की परिभाषा दी गई है। इस खण्ड में ‘‘सामाजिक संपरीक्षा से अभिप्रेत है, ग्राम सभा में निष्पादित किए गए सामुदायिक कार्यो और हितग्राही उन्मुख कार्यो की गुणवत्ता से संबंधित व्यय के संबंध में ग्राम सभा के सदस्यों का मत’’ है।

धारा 39 (पंचायत के पदधारी का निलम्बन) का संशोधन -

मूल अधिनियम की धारा में 39 की उपधारा 2 में पूर्व के प्रावधान के अनुसार निलम्बन की रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजी जाती थी और राज्य द्वारा ऐसी रिपोर्ट की पुष्टि 90 दिवस में नहीं की जाती तो वह निष्प्रभावी कर दिया समझा जाएगा। अब इस धारा में संशोधन करते हुये ‘‘राज्य सरकार के साथ ही साथ प्राधिकृत अधिकारी’’ को भी जोड़ दिया गया है। संशोधित प्रावधान के अनुसार, मूल अधिनियम की धारा 39 में, उपधारा 2 के स्थान पर निम्नलिखित उपधारा स्थापित की गई है। अर्थात:- (2) उपधारा (1) के अधीन दिए गए निलम्बन आदेश की रिपोर्ट राज्य सरकार या प्राधिकृत अधिकारी को दस दिन की कालावधि के भीतर की जाएगी और वह ऐसे आदेशों के अध्यधीन रहते हुए होगा जो राज्य सरकार या प्राधिकृत अधिकारी उचित समझे। यदि निलम्बन आदेश की पुष्टि राज्य सरकार या प्राधिकृत अधिकारी द्वारा ऐसी रिपोर्ट की प्राप्ति की तारीख से नब्बे दिन के भीतर नहीं जाती है तो वह निष्प्रभावी कर दिया गया समझा जाएगा।

धारा 44 (सम्मिलन की प्रक्रिया) का संशोधन -

मूल अधिनियम की धारा 44 में, उपधारा 5 में पंचायत की बैठक में रखी जाने वाली रिपोर्ट विहित रीति से तैयार किये जाने का प्रावधान किया गया था। अब मूल अधिनियम की धारा 44 में, उपधारा 5 में शब्द ‘‘रिपोर्ट ऐसी रीति में तैयार की जाएगी जो विहित की जाए’’ के स्थान पर शब्द ‘‘आय और व्यय की रिपोर्ट अनुमोदित प्राक्कलिक वार्षिक बजट के साथ अंकों के तुलनात्मक विवरण के अनुसार तैयार की जाएगी, जो मुख्य कार्यपालन अधिकारी द्वारा सम्मिलन में रखी जाएगी’’ स्थापित किया गया है।

धारा 53 (पंचायतों के कृत्यों के संबंध में राज्य सरकार की शक्ति) का संशोधन -

मूल अधिनियम की धारा 53 में उपधारा 1 में खण्ड (क) में राज्य सरकार द्वारा पंचायतों को समुचित स्तर पर शक्तियां तथा प्राधिकार सौंपा गया था। नवीन

संशोधन में शक्तियां मय बजट और कर्मचारियों के साथ दिये जाने का उल्लेख किया गया है। अब मूल अधिनियम की धारा 53 में उपधारा 1 में खण्ड (क) के स्थान पर निम्नलिखित खण्ड स्थापित गया है। अर्थात - (क) ऐसी शर्तो के अध्याधीन रहते हुए, जैसी कि राज्य सरकार द्वारा साधारण या विशेष आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट की जाएं, पंचायतों को समुचित स्तर पर बजट तथा कर्मचारिवृंद के साथ ऐसी शक्तियां सौंपी जाएंगी जो कि अनुसूची - 4 (29 विषयों कीसूची) में सूचीबद्ध विषयों के संबंध में, जिसके अन्तर्गत आर्थिक विकास एवं सामाजिक न्याय के लिए योजनाओं की तैयारी और स्कीमों का क्रियान्वयन तथा धारा 7 (ग्राम सभा की शक्तियां और कृत्य और उसका वार्षिक सम्मिलन), 49 (ग्राम पंचायत के कृत्य), 49-क (ग्राम पंचायत के अन्य कृत्य), 50 (जनपद पंचायत के कृत्य), 52 (राज्य सरकार के कतिपय कृत्यों का जनपद पंचायत या जिला पंचायत को सौंपा जाना), और अध्याय 14-क (अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों के लिए विशेष उपबंध) के अधीन उन्हें सौंपे गए अन्य कर्तव्य और कृत्य आते हैं, स्वायत्त शासन की संस्थाओं के रूप में कार्य करने के लिए उन्हें समर्थ बनाने हेतु आवश्यक हों।’’ धारा 69 (सचिव तथा मुख्य कार्यपालक अधिकारी की नियुक्ति) का
संशोधन -

मूल अधिनियम की धारा 69 में उपधारा 1 में में ग्राम पंचायत के लिये या एक से अधिक ग्राम पंचायतों के समूह के लिए एक सचिव नियुक्त करने का प्रावधान था। नवीन संशोधन में अब किसी ग्राम पंचायत में एक सचिव तथा एक या अधिक सहायक सचिव को नियुक्त किया जा सकता है। ऐसा व्यक्ति जो संबंधित ग्राम पंचायत के किसी पदाधिकारी का नातेदार हो वह सचिव का प्रभार धारण नहीं करेगा यह प्रावधान अब सहायक सचिव के लिए लागू होगा।

संशोधन के अनुसार मूल अधिनियम की धारा 69 में उपधारा 1 में, - (एक) आरंभिक पैराग्राफ के स्थान पर, निम्नलिखित पैराग्राफ स्थापित किया गया है। अर्थात:- ‘‘राज्य सरकार या विहित प्राधिकारी, किसी ग्राम पंचायत के लिए एक सचिव तथा एक या अधिक सहायक सचिवों को नियुक्त कर सकेगा, जो ऐसे कृत्यों का निवर्हन तथा ऐस कर्तव्यों का पालन करेगें जैसा कि राज्य सरकार या विहित प्राधिकारी द्वारा उन्हें समनुदेशित किए जाएं। (दो) द्वितीय परन्तुक में, शब्द ‘‘सचिव’’ के स्थान पर शब्द ‘‘सचिव या सहायक सचिव’’ स्थापित किए जाएं।

धारा 76-क (रकम का पंचायतों के बीच संवितरण) का संशोधन -

मूल अधिनियम की धारा 76-क में उपधारा 4 में अतिरिक्त स्टाम्प शुल्क से संबंधित रकम जनपद पंचायतों को दिये जाने का प्रावधान किया गया था। नवीन संशोधन में यह रकम जनपद पंचायत के साथ ही साथ ग्राम पंचायत को भी दिये जाने का प्रावधान किया गया है। नवीन संशोधन अनुसार मूल अधिनियम की धारा 76-क में उपधारा 4 में शब्द ‘‘जनपद पंचायतों’’ के स्थान पर ‘‘जनपद पंचायत और ग्राम पंचायत’’ स्थापित किए जाएं।

धारा 92 (अभिलेख और वस्तुएं वापस कराने तथा धन वसूल करने की शक्ति) का संशोधन -

मूल अधिनियम की धारा 92 में उपधारा 4 में अभिलेख और वस्तुएं वापस कराने तथा धन वसूल करने की शक्ति से संबंधित प्रावधान हैं। संबंधित व्यक्ति को सुनवाई के युक्तियुक्त अवसर दिये जाने का उल्लेख प्रावधान में किया गया है। नवीन संशोधन में यह प्रावधान जोड़ा गया है कि विहित प्राधिकारी द्वारा वसूली आरंभिक तारीख से छह माह के भीतर व्ययनित कर दी जावेगी। संशोधन के अनुसार मूल अधिनियम की धारा 92 में उपधारा 4 के पश्चात निम्नलिखित उपधारा अन्तःस्थापित की जाए, अर्थात - ‘‘(4-क) विहित प्राधिकारी द्वारा किसी मामले में संबंधित किसी अभिलेख या वस्तु या धन के लिए आरम्भ की गई वसूली, आरंभिक तारीख से छह माह के भीतर व्ययनित (Disposed) कर दी जाएगी’’

धारा 122 (निर्वाचर अर्जी याचिका) का संशोधन -

मूल अधिनियम की धारा 122 में उपधारा 3 में ऐसी अर्जी की जांच या उसका निपटारा विहित प्रक्रिया अनुसार किये जाने का उल्लेख किया गया था अब यह निपटारा विहित प्रक्रिया अनुसार छह माह के भीतर किया जावेगा। मूल अधिनियम की धारा 122 में उपधारा 3 के स्थान पर निम्नलिखित उपधारा स्थापित की जाए - (3) ऐसी अर्जी की जांच या उसका निपटारा छह माह के भीतर ऐसी प्रक्रिया के अनुसार किया जाएगा जो विहित की जाए’’।

संदर्भ -
  1. मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज (संशोधन) अधिनियम, 2012, मध्यप्रदेश राजपत्र, भोपाल दिनांक 23 मई 2012
  2. मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज (संशोधन) अधिनियम, 2011, मध्यप्रदेश राजपत्र, भोपाल दिनांक 10 अगस्त 2011
  3. मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम, अठारहवा संस्करण: 2011, समीक्षक डा.राधेश्याम द्विवेदी, सुविधा ला हाउस प्रा. लि. भोपाल, म.प्र.






  अनुक्रमणिका  
संजय राजपूत,
संकाय सदस्य, जबलपुर
पेटलावद का टमाटर दिल्ली तक

झाबुआ जिले के पेटलावद ब्लाक को टमाटर की फसल ने अब आर्थिक रूप से सम्पन्न बना दिया है। झाबुआ के टमाटर ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना ली है पेटलावद जनपद पंचायत में कुछ समय से टमाटर की फसल की तरफ अब किसानों का रूझान बढ़ा है। जनपद पंचायत में इस वर्ष 1600 से 1700 हेक्टेयर में टमाटर की फसल बोयी गई है, जो कि 10 वर्ष पूर्व मात्र 200 हेक्टेयर में ही हुआ करती थी। भाव व उत्पादन भी गत 6-7 वर्षो के अपेक्षा अच्छा मिल रहा है।

इसके फलस्वरूप किसान खुश है। जनपद पंचायत के ग्राम जामली, करड़ावद, रायपुरिया, सारंगी, बौलासा, बनी, झावलिया, जामली सहित 2 दर्जन गांवों में नियमित 10 से 15 मिनी ट्रक टमाटर भरकर मण्डियों में भेजकर किसान मुनाफा कमा रहे है। किसानों ने बताया कि उन्होंने 5 बीघा में टमाटर लगाये है। इस प्रकार वर्षों बाद किसानों को टमाटर की फसल में अच्छा मुनाफा मिलने की उम्मीद है।

मजदूरी महंगी -

कृषक गोविन्द ने बताया कि मजदूरी की कमी के चलते क्षेत्र में मजदूरी की दर में वृद्धि हुई है। पूर्व में 100 से 125 रू. प्रतिदिन के भाव से आसानी से मजदूर मिल जाते थे। परन्तु अब 125 से 150 तक मजदूरी देने के बाद भी मजदूर मुश्किल से मिलते है।

लागत महंगी फिर भी मुनाफा -

रामगढ़ के प्रवीण कुमार ने बताया कि टमाटर की लागत महंगी है। यदि भाव अच्छा मिले तो मुनाफा होता है। फर्टिलाईजर, मेडिसिन आदि पर कृषक ने बताया कि रू. 25000/- व्यय आया है। अभी तक 50 हजार रू. के टमाटर बेच चुके है। और अभी दो माह तक फसल आती रहेगी। पेटलावद क्षेत्र के टमाटर का निर्यात दिल्ली तक हो रहा है।

इस फसल का यह फायदा है कि यह अल्प अवधि में भी उत्पादन शीघ्र देने लगती है। इसकी आवक माह अक्टूबर से शुरू हो जाती है। शुरूआती सीजन में पूरे क्षेत्र के गांवो से 7 से 8 ट्रक प्रतिदिन उत्पादन होता है तथा नवम्बर माह में यह 70 से 100 ट्रक तक उत्पादन बढ़ जाता है। गुणवत्ता, स्वाद, चमक के कारण पेटलावद तहसील का टमाटर पड़ोसी राज्यों के अहमदाबाद, सूरत, नडियाद आदि महानगरो में काफी लोकप्रिय हो रहा है। दिल्ली की मंडी में तो नीलामी में पेटलावद का टमाटर काफी अच्छी बोली में ऊँचे भावों में बिकता है।

बाघा बार्डर के रास्ते पाकिस्तान को भी यहाँ का टमाटर निर्यात किया जाता है। पाकिस्तानी लोगों में विशेषकर पेटलावद तहसील के टमाटरो की मांग है। कृषक हीरालाल डाबी मोहनपुरा ने बताया कि टमाटर के विपणन के लिये पारदर्शी सहकारी विक्रय प्रणाली अपनाएँ, जिससे किसान स्वयं अपनी फसल स्वतंत्र रूप से मण्डियों में पहुंचा सकेंगे। क्षेत्र में टमाटर अच्छे उत्पादन को दृष्टिगत रखते हुए, शासन टमाटर की इकाई की स्थापना करने हेतु तत्पर हो फलस्वरूप किसानों को उचित दाम मिल सके। जिले में टमाटर की अच्छी पैदावार से अन्य किसान भी अपने खेतो में टमाटर लगाने के प्रति उत्साहित है। जिससे उन्हें आर्थिक लाभ के साथ-साथ विकास की राह मिल सकेगी।





  अनुक्रमणिका  
जी.एस. लोहिया
संकाय सदस्य, ई.टी.सी. उज्जैन
शिक्षा है महिला सशक्तिकरण का रहस्य

महिला सशक्तिकरण की जब भी बात की जाती है, तब सिर्फ राजनीतिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण पर चर्चा होती है पर सामाजिक सशक्तिकरण की चर्चा नहीं होती ऐतिहासिक रूप से महिलाओं को दूसरे दर्जे का नागरिक माना जाता रहा है। उन्हें सिर्फ पुरुषों से ही नहीं बल्कि जातीय संरचना में भी सबसे पीछे रखा गया है। इन परिस्थितियों में उन्हें राजनीतिक एवं आर्थिक रूप से सशक्त करने की बात बेमानी लगती है भले ही उन्हें कई कानूनी अधिकार मिल चुके हैं। महिलाओं का जब तक सामाजिक सशक्तिकरण नहीं होगा तब तक वह अपने कानूनी अधिकारों का समुचित उपयोग नहीं कर सकेंगी सामाजिक अधिकार या समानता एक जटिल प्रक्रिया है और कभी-कभी तो वह सामाजिक विकास को पीछे धकेलती हैं।

प्रश्न यह है कि सामाजिक सशक्तिकरण का जरिया क्या हो सकती हैं इसका जवाब बहुत ही सरल पर लक्ष्य कठिन है। शिक्षा एक ऐसा कारगर हथियार है जो सामाजिक विकास की गति को तेज करता है समानता स्वतंत्रता के साथ-साथ शिक्षित व्यक्ति अपने कानूनी अधिकारों का बेहतर उपयोग भी करता है और राजनीतिक एवं आर्थिक रूप से सशक्त भी होता है। महिलाओं को ऐतिहासिक रूप से शिक्षा से वंचित रखने का षडयंत्र भी इसलिए किया गया कि न वह शिक्षित होंगी और न ही वह अपने अधिकारों की मांग करेंगी यानी उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाये रखने में सहुलियत होगी इसी वजह से महिलाओं में शिक्षा का प्रतिशत बहुत ही कम है हाल के वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों एवं स्वाभाविक सामाजिक विकास के कारण शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है जिस कारण बालिका शिक्षा को परे रखना संभव नहीं रहा है। इसके बावजूद सामाजिक एवं राजनीतिक रूप से शिक्षा को किसी ने प्राथमिकता सूची में पहले पायदान पर रखकर इसके लिए विशेष प्रयास नहीं किया कई सरकारी एवं गैर सरकारी आंकड़े यह दर्शाते हैं कि महिला साक्षरता दर बहुत ही कम है और उनके लिए प्राथमिक स्तर पर अभी भी विषम परिस्थितियाँ हैं। यानी प्रारम्भिक शिक्षा के लिए जो भी प्रयास हो रहे हैं

उसमें बालिकाओं के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ निर्मित करने की सोच नहीं दिखती। महिला शिक्षकों की कमी एवं बालिकाओं के लिए अलग शौचालय नहीं होने से बालिका शिक्षा पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है और प्राथमिक एवं मिडिल स्तर पर बालकों की तुलना में बालिकाओं की शाला त्यागने की दर ज्यादा है। यद्यपि प्राथमिक स्तर की पूरी शिक्षा व्यवस्था में ही कई कमियां हैं।

प्राथमिक शिक्षा पूरी शिक्षा प्रणाली की नींव है और इसकी उपलब्धता स्थानीय स्तर पर होती है। इस वजह से बड़े अधिकारी या राजनेता प्रारम्भिक शिक्षा व्यवस्था की कमियों जरूरतों से लगातार वाकिफ नहीं होते जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए था। अत यह जरूरी है कि प्रारंभिक शिक्षा की निगरानी एवं जरूरतों के प्रति स्थानीय प्रतिनिधि अधिक सजगता रखें चूंकि शहरों की अपेक्षा गांवों में प्राथमिक स्तर पर शिक्षा की स्थिति बदतर है इसलिए गांवों में बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने और बच्चों में शिक्षा के प्रति जागरूकता लाने पर खास जोर देने की जरूरत है।

73वें संविधान संशोधन के बाद पंचायतीराज व्यवस्था के तहत निर्वाचित स्थानीय प्रतिनिधियों ने भी पिछले 10-15 वर्षों में शिक्षा के लिए उल्लेखनीय कार्य किया। शुरुआती दौर में महिला पंचायत प्रतिनिधियों ने भी कठपुतली की तरह पुरुषों के इशारे एवं दबाव में उनकी मर्जी के खिलाफ अलग कार्य नहीं किया। आज भी अधिकांश जगहों पर महिला पंच-सरपंच मुखर तो हुई हैं पर सामाजिक मुद्दों के प्रति उनमें अभी भी उदासीनता है। इसके बावजूद महिला पंचों एवं सरपंचों से ही सामाजिक मुद्दों पर कार्य करने की अपेक्षा की जा रही है क्योंकि सामाजिक सशक्तिकरण के लिहाज से यह उनके लिए भी जरूरी है।

इन विषम परिस्थितियों के बावजूद प्रदेश के कई पंचायतों में आशा की किरण दिख रही है। मध्यप्रदेश में सबसे पहले पंचायत चुनाव हुआ था इसलिए बदलाव की बयार भी सबसे बेहतर यहीं दिख रही हैं। कई जिलों के कई पंचायतों की महिला सरपंचों एवं पंचों ने सामाजिक मुद्दों पर कार्य शुरू कर दिया है। खासतौर से शिक्षा के प्रति उनमें मुखरता आई है। अंततः महिलाओं ने इस बात को समझना शुरू कर दिया है कि उनकी वास्तविक सशक्तिकरण के लिए शिक्षा एक कारगर हथियार है। शिक्षा को अपनी प्राथमिकता सूची में पहले स्थान पर रखने वाली महिला सरपंचों एवं पंचों का स्पष्ट कहना है कि शिक्षा में ही गांव का विकास निहित है और सामाजिक मुद्दों पर काम करने वाली महिला सरपंचों एवं पंचों को ही वास्तविक रूप से सशक्त माना जा सकता हैं।





  अनुक्रमणिका  
सुरेन्द्र प्रजापति
संकाय सदस्य, जबलपुर
पंच परमेश्वर योजनांतर्गत पंचों के प्रशिक्षण हेतु प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण

प्रशिक्षण आवश्यकता पृष्ठभूमि -

पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत त्रि-स्तरीय संरचना में वार्डो के पंच प्रतिनिधियों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है सही संचालन व्यवस्था के लिये पंच प्रतिनिधियों को अपने कर्तव्य दायित्वों का बोध कराने हेतु पंच परमेष्वर योजना अंतर्गत पंचो के प्रशिक्षण हेतु प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण दिनांक 15/01/2013 से 17/01/2013 तक कुल 03 दिवस का आयोजन संस्थान में किया गया जिसमें सहयोगी संस्था शोध जबलपुर एवं आईसेक्ट होशंगाबाद के 40 प्रशिक्षकों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया।

प्रशिक्षण के विषय -

प्रशिक्षण में निम्नलिखित विषयो पर चर्चा हुई- मजबूत पंचायत अवधारणा, संरचना, समितियां तथा बैठक आयोजन, ग्रामसभा पंचायतो द्वारा करारोपरण, पेयजल योजनायें, मुख्यमंत्री पेयजल योजना, स्वजलधारा योजना, मर्यादा, मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम, ग्रामीण विकास विभाग आवास योजनायें, बीमा योजनायें एवं सार्वजनिक वितरण प्रणाली, समाज कल्याण की योजना एवं श्रम कल्याण, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना, ग्राम के विकास में सड़को का योगदान, नाली निर्माण, पक्की सड़क निर्माण।

प्रशिक्षण के महत्वपूर्ण बिन्दु -

प्रशिक्षण का मुख्य लक्ष्य यह रहा कि प्रशिक्षणार्थियों को विषय का पूर्ण रूप से जानकारी प्राप्त करवाना एवं प्रस्तुतिकरण के माध्यम से विषयो को प्रस्तुत करना।

  1. प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य था कि जानकारी को हितग्राही तक सफलता पूर्वक पहुचाना।
  2. इस प्रशिक्षण में प्रशिक्षकों को कई विधियों की जानकारी दी गई जैसे सहभागी व्याख्यान, समूह चर्चा, फिल्म प्रदर्शन इत्यादि।
  3. इस प्रशिक्षण में प्रशिक्षकों को स्वयं के कौशल विकास के उपर भी जानकारी दी गई जैसे- प्रशिक्षक के क्या गुण है? , संवाद के समय कौन-कौन सी बातो का ध्यान रखना चाहिये?

इस प्रशिक्षण के माध्यम से प्रशिक्षकों को पंचायतो के पूर्ण ज्ञान के साथ-साथ व्यक्तिगत कौशल उन्नयन पर भी जोर दिया गया जो सफल क्रियान्वयन में अपनी महत्पूर्ण भूमिका निभा सकेगे।

  अनुक्रमणिका  
प्रकाशन समिति

संरक्षक एवं सलाहकार
  • श्रीमती अरुणा शर्मा(IAS),अपर मुख्य सचिव,
    म.प्र.शासन,पं.एवं ग्रा.वि.वि.,
  • श्री राजेश राजौरा(IAS),सचिव,म.प्र.शासन,पं.एवं ग्रा.वि.वि.


प्रधान संपादक

निलेश परीख,
संचालक,
महात्मा गांधी राज्य ग्रामीण विकास संस्थान-म.प्र., जबलपुर


सह संपादक
संजीव सिन्हा, उप संचालक, म.गां.रा.ग्रा.वि.स.-म.प्र., जबलपुर

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