महात्मा गाँधी राज्य ग्रामीण विकास संस्थान जबलपुर (म.प्र.)

    ई-समाचार पत्र
                                   पहल
त्रैमासिक - प्रथम संस्करण गाँधी जयंती ०२ अक्टूबर, २०१०
श्री आर. परशुराम, विकास आयुक्त एवं अतिरिक्त मुख्य सचिव, पंचायत एवं ग्रामीण विकास ने कार्यकारणी की बैठक ली
महात्मा गाँधी राज्य ग्रामीण विकास संस्थान के २० वी कार्यकारणी समिति की बैठक संस्थान के कांफ्रेंस हाल में दिनांक ०३-०८-२०१० को विभाग के प्रमुख सचिव एवं अतिरिक्त मुख्य सचिव श्री आर. परशुराम की अध्यक्षता में संपन्न हुई | इस बैठक में श्री अजय तिर्की, सचिव, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, श्री व्यास अतिरिक्त संचालक प्रशिक्षण व रोजगार जबलपुर श्री एन.वी. पंथी, प्रतिनिधि आयुक्त पंचायत एवं सदस्य सचिव श्री के.के. शुक्ला, संचालक व श्री संजीव सिन्हा उपसंचालक उपस्थित रहे | विशेष आमंत्रित सदस्य श्री शिव शेखर शुक्ला, सी.ई.ओ. मनारेगा, श्री एम.बी. ओझा, संचालक रोजगार, श्री एच.पी. शिवहरे, मुख्य अभियंता
ग्रामीण यांत्रिकी सेवा, भोपाल, श्री श्याम बोहरे भोपाल, श्री बीनू चतुर्वेदी, एस.पी.सी. सी.डी.एल.जी. प्रोजेक्ट भोपाल उपस्थित रहे |
समिति के सदस्य सचिव एवं संचालक श्री शुक्ला ने १९ बिंदुओं के एजेंडा का प्रस्तुतिकरण किया | बैठक में मुख्य रूप से संस्थान एवं क्षेत्रीय केन्द्रों के माह जून, २०१० तक के आय व्यय का अनुमोदन, वार्षिक कार्यक्रम वर्ष २०१०-११ का अनुमोदन, विधुत सुरक्षा अधिकारी, हेल्पर, (एलेक्ट्रेशियन) विधुत ओपेरटर एवं छात्रावास स्वागतकर्ता के मानदेय में प्रस्तावित वृद्धि का अनुमोदन किया गया | इसी तरह एक अन्य विषय में लेखाधिकारी की सेवाब्रद्धि तथा रिक्त संकाय सदस्यों
की पूर्ति का अनुमोदन किया गया | वाहन चालक श्री दिनेश शुक्ला के भी नई संविदा निति अनुरूप मासिक संविदा राशि में बढोत्तरी का लाभ प्राप्त हुआ | संस्थान एवं ई.टी.सी. केन्द्रों के अधोसंरचनात्मक वृद्धि विकास सम्बन्धी कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए | एक लम्बी अवधि से लंबित संकाय सदस्यों के मानदेय में वृद्धि के प्रकरण का भी निराकरण नई संविदा नियुक्ति के अनुरूप करते हुए उन्हें भी लाभान्वित करने का निर्णय लिया गया | जिससे संकाय सदस्यों में हर्ष व्याप्त है |
                                                        श्रीप्रकाश चतुर्वेदी
संस्थान का परिचय
परिचय:-
संस्थान की स्थापना पचास के दशक में भारत शासन के ट्रायवल ओरिएंटेशन ट्रेनिंग सेण्टर के रूप में की गयी थी | बाद में १९६७ में संस्थान पंचायत राज एवं सामुदायिक विकास प्रशिक्षण केंद्र के रूप में परिवर्तित होकर, पंचायती राज के संबंध में विभिन्न स्तर के अधिकारियों के प्रशिक्षण की जिम्मेदारी निभाने लगा |
ग्रामीण विकास की सोच में बदलाव से विकास के बारे में नए विचार, नई योजने सामने आ रही थी | इस द्रष्टि से भारत सरकार ने प्रत्येक राज्य में एक राज्य ग्रामीण विकास संस्थान की स्थापना करने का निर्णय लिया | प्रशिक्षण एवं अनुसंधान के क्षेत्र में पंचायत राज प्रशिक्षण केंद्र की ऐतिहासिक भूमिका को द्रष्टि में रखते हुए इसे १९८७ में राज्य ग्रामीण विकास संस्थान के रूप में उन्नत किया गया | इससे संस्थान की पहचान पंचायत एवं ग्रामीण विकास के शीर्ष प्रशिक्षण संस्थान के रूप में बनी | 
                संस्थान ग्रामीण विकास से जुड़े अधिकारियों, कर्मचारियों, जनप्रतिनिधियों के ज्ञान व कौशल में वृद्धि एवं विकास मानसिकता में सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करने लगा, जिससे वे विकास के नवीन ज्ञान व तकनीकी की जानकारी प्राप्त कर सकारात्मक सोच के साथ गुणात्मक विकास में अपनी भूमिका का निर्वाह कर सके | 
              नई जिम्मेदारियों को निभाने एवं कार्यक्षेत्र में विस्तार के लिए समक्ष बनाने की द्रष्टि से अप्रैल १९९६ से संस्थान को स्वायत्तता दी गयी एवं यह स्वशासी संस्थान के रूप में कार्य करने लगा | प्रदेश में भोपाल, उज्जैन, ग्वालियर, इंदौर, मुलताई, एवं नौगांव (छतरपुर) में स्थित क्षेत्रीय ग्रामीण विकास प्रशिक्षण केंद्र अधिक सार्थक भूमिका का निर्वाह कर सके, इसलिए ये सभी केन्द्र संस्थान के अंतर्गत लाए गए | जिन संभागो में प्रशिक्षण केन्द्र नहीं थे वहां प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध कराने की द्रष्टि से रीवा संभाग में सीधी जिले के रामपुर नैकिन में नया प्रशिक्षण केन्द्र प्रारंभ किया गया | वर्तमान में मुलताई केन्द्र सिवनी में स्थानांतरित कर दिया गया है |
 

शोध अध्ययन:-
        शोध केस स्टडी, कंसलटेसी के क्षेत्र में विगत वर्षो से संस्थान में कार्य प्रारंभ किया गया है | भारत शासन द्वारा जल ग्रहण क्षेत्र विकास की योजनाओ के मूल्यांकन का उत्तरदायित्व भी संस्थान को दिया गया है |
        वर्तमान में नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण द्वारा सरदार सरोवर परियोजना के विस्थापित परिवारों का प्रबंधन एवं मूल्यांकन कार्य भी संस्थान को सौपा गया है |
अधोसंरचनाए:-
पुस्तकालय:-
                संस्थान में लगभग १४,००० पुस्तके, ३५ पत्र पत्रिकाए और जर्नल्स से सुसज्जित पुस्तकालय है, जो विश्वविद्यालय  स्तर के शोधकर्ताओ के लिए भी महत्त्वपूर्ण संसाधन बना हुआ है | पुस्तकालय की सदस्यता संस्थान के अधिकारियो, कर्मचारियों, संकाय सदस्यों के साथ-साथ नाम मात्र के शुल्क पर शोधकर्ताओ एवं अध्येताओ के लिए भी उपलब्ध है | 
कम्प्यूटर एवं मल्टी मीडिया _
     संस्थान में कम्प्यूटर के प्रशिक्षण एवं कम्प्यूटर पर कार्य करने के लिए एक लैब स्थापित है | जिसमे २० पेनटीयम-४ कम्प्यूटर लगे है | कार्य की सुविधा एवं शीघ्रता की द्रष्टि से प्रत्येक अधिकारियो एवं संकाय सदस्यों के कक्ष में भी कम्प्यूटर स्थापित किया गया है |
                       संस्थान में इन्टरनेट एवं ई-मेल की सुविधा भी उपलब्ध है |
प्रशासनिक व्यवस्था:-
                                   संस्थान एवं क्षेत्रीय ग्रामीण प्रशिक्षण केन्द्रों के लिए प्रशासनिक नियंत्रण एवं नीतिगत निर्णय स्वायत्त शासी व्यवस्था के अंतर्गत माननीय मंत्री जी पंचायत एवं ग्रामीण विकास की अध्यक्षता में गठित, शासक मंडल द्वारा लिए जाते है | संस्थान की गतिविधियों को समुचित रूप से संचालित करने एवं नीतिगत निर्णय के पालन का अनुश्रवण करने, समय समय पर मार्गदर्शन व दिशा निर्देश देने के लिए प्रमुख सचिव ग्रामीण विकास विभाग की अध्यक्षता में कार्यकारिणी समिति गठित है |नीतिगत निर्णयों के क्रियान्वयन एवं संस्थान की दिन प्रतिदिन की गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने की जिम्मेदारी संचालक को दी गयी है | उनकी सहायता के लिए संयुक्त संचालक, उपसंचालक, प्रशासनिक अधिकारी व तृतीय व चतुर्थ श्रेणी का अमला पदस्थ है | प्रशिक्षण व शोध संबंधी गतिविधियों के लिए ४ कोर फैकल्टी एवं ४ अन्य संकाय सदस्य पदस्थ है | संस्थान के संचालक शासक मंडल एवं कार्यकारिणी समिति के पदेन सदस्य सचिव भी होते है |
गतिविधिया:-
संस्थान ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज के संबंध में प्रशिक्षण, शोध मूल्यांकन की गतिविधियों के लिए संकल्पित है | संस्थान में पंचायत राज, जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन, ग्रामीण स्वक्षता, प्रशासकीय एवं वित्तीय प्रबंधन, जेंडर एवं विकास के साथ साथ
विभिन्न विभागों के अधिकारियों एवं कर्मचारियों  की दक्षता विकास हेतु प्रशिक्षण कार्यकमो का संचालन व कार्यशालाओ का आयोजन किया जाता है | इसके साथ साथ विभिन्न विभागों की विशिष्ट आवश्यकताओ को ध्यान में रखकर विशिष्ट प्रशिक्षण विकसित किये गए है |
आवास एवं भोजनालय -
संस्थान में ३ छात्रावास भवन है, जिनमे लगभग १५० प्रतिभागियों के रहने की व्यवस्था है | संस्थान में भ्रमण पर आने वाले वरिष्ट अधिकारियो एवं अतिथि वक्क्ताओ के प्रवास के लिए १० कक्षों वाला एक अतिथि गृह भी है |
आवासीय प्रशिक्षण के लिए छात्रावास में भोजन व्यवस्था भी उपलब्ध है सुसज्जित मैस में ०३ भोजन कक्ष है |

                                                                               के.के. शुक्ल
                                                                               संचालक
सुशासन का अत्र - नागरिक मूल्यांकन पत्रक
हाल ही  में  संपन्न हुए १५ वी लोकसभा के चुनावो  में  लगभग सभी राजनैतिक दलो ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में जनता को सुशासन देने का वायदा किया था | एक तरह से यह विषय इस कारण फिर चर्चा में आ गया | सुशासन के मायने क्या है ? यह एक विचार-विमर्श का विषय है | सुशासन का अर्थ अलग-अलग है, लेकिन यहाँ हमारा आशय सरकार द्वारा जनता को प्रदान की जाने वाली मूलभूत सेवाओं की गुणवत्ता के स्तर से है | क्योंकि आम आदमी का सरकार से सरोकार इन्ही सेवाओं के माध्यम से होता है | यह स्तर ही सरकार के सुशासन के स्तर को निर्धारित करता है | यदि इन सेवाओं को प्रदान करने का स्तर उच्च है तो सरकार सुशासन देने मैं सक्षम हैं तथा यदि इसके विपरीत स्तर निम्न है तो सरकार सुशासन देने मैं असफल है | मूलभूत सेवाओं मैं सम्मिलित है पीने का स्वच्छ पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाए, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, सामाजिक सुरक्षा के कार्यक्रम, गरीबी हटाने के कार्यक्रम, कमजोर वर्गों के विकास तथा पिछड़े क्षेत्रों के विकास कार्यक्रम आदि | जनता को मूलभूत सेवाएँ प्रदान करने में सरकार की प्रमुख भूमिका है | मूलभूत सेवाओं की उपलब्धता एवं गुणवत्ता से जनता का जीवन स्तर निर्धारित होता है | सभी लोग इस बात से सहमत है कि सतत सुद्रण विकास के लिए अच्छा जीवन स्तर होना प्राथमिक आवश्यकता है | सरकार अकेली मूलभूत सेवाए उपलब्ध कराने का माध्यम क्यों है ? इसके अनेक कारण है लेकिन इसका सबसे प्रमुख कारण है कि मूलभूत अधोसंरचना विकसित करने में भारी लागत आती है तथा उस अनुपात में निवेश पर आय नहीं होने के कारण निजी क्षेत्र का आकर्षण इन सेवाओं को उपलब्ध करवाने के प्रति नहीं होता है | सरकार अपनी आय का एक बड़ा भाग मूलभूत सेवाओं को उपलब्ध करवाने में व्यय करती है | लेकिन केवल अधिक व्यय करने मात्र से गुणवत्ता को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता | सरकार अपने काम का आंकलन केवल भौतिक एवं वित्तीय व्यय के आधार पर ही करती है | क्या केवल व्यय या हितग्राहियों की संख्या गिनकर गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सकती है ? इसी कारण योजनाओं में भौतिक एवं वित्तीय लक्ष्य पूरे करने के बावजूद मानव विकास सूचकांक जैसी रिपोर्टों में उस अनुपात में सुधार परिलक्षित नहीं होता | यदि मूलभूत सेवाओं की गुणवत्ता ठीक नहीं हे तो मानव विकास सूचकांक सुधारने जैसे दूरगामी लक्ष्य प्राप्त नहीं किये जा सकते | स्वतंत्रता के पश्चात क्षेत्र एवं व्यक्ति के विकास की विषमतायें कम करने तथा सुनियोजित विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पंचवर्षीय योजनाओं को लागू किया गया | प्रत्येक सरकार का लक्ष्य मानव विकास सूचकांक में सुधार करने का रहा है | केंद्र एवं राज्य सरकारों के बजट में इन मदों में आवंटन निरंतर बढा है लेकिन सामाजिक विकास एवं मानव विकास सूचकांक में सुधार के लक्ष्य प्राप्त करने में अपेक्षित उपलब्धियां नहीं रही | अनेकों अध्ययनों से यह स्पष्ट है की विगत ६० साल के सुनियोजित विकास एवं लक्षित क्षेत्र तथा लक्षित व्यक्तियों को विकसित करने की रणनीति के बावजूद विकसित एवं अविकसित क्षेत्रों तथा गरीब एवं धनी व्यक्तियों के मध्य अंतराल निरंतर बढता ही जा रहा है | मूलभूत सेवाओं की अनुपलब्धता गरीबी का एक प्रमुख कारण माना जाता है | यह धारणा भी सही सिद्ध नहीं हुई है कि केवल प्रजातान्त्रिक व्यवस्था से पिछड़ापन एवं गरीबी दूर हो सकती है | शासन द्वारा प्रदत्त सेवाओं का प्रबंधन सही नहीं होने की धारणा आम है | लेकिन इसके अनेक कारण और भी है जैसे जनसँख्या बदने के कारण सार्वजनिक सेवाओं पर निरंतर दबाव बढता गया है तथा उस अनुपात में संसाधनों में वृद्धि नहीं हुई | मूलभूत सेवाओं प्रदान करने वाली संस्थाएं कम संसाधन, नीरोत्साहित कर्मचारी, जन संगठनों का अभाव तथा जनता की भागीदारी के अभाव आदि में काम करती है | परतंत्रता के समय प्रशासन का विकास मूलतः राजस्व की वसूली तथा कानून एवं व्यवस्था को सुधारने के लिए हुआ था स्वतंत्रता के पश्चात उसी तंत्र को मूलभूत सेवाओं को प्रदान करने तथा विकास एवं सामाजिक सुधार का काम करने की जिम्मेदारी दे दी गई, लेकिन सेवा प्रदाता संस्थानों में आवश्यक व्यावसायिक योग्यता के प्रबंधको का अभाव होने के कारण गुणवत्ता के लिए मापदंड विकसित नहीं हो सके | इन सेवाओं को प्रदान करने में शासकीय संस्थाओं का एकाधिकार, पारदर्शिता की कमी, उत्तरदायित्व निर्धारित न होना आदि कुप्रबंधन के प्रमुख कारण रहे है | यह आवश्यक नहीं है कि एक अच्छा प्रशासक कुशल विकासकर्ता या कुशल प्रबंधक हो सकता है | शासकीय सेवाओं में व्यवसायिक प्रबंधकीय क्षमता के विकास तथा विषय कुशलता के विकास पर कभी जोर नहीं दिया गया |
आज भी विकास की समस्याओं का समाधान प्रशासकीय दक्षता के माध्यम से करने की कोशिश जारी है | अनेक लोगो का मानना है कि इन सेवाओं कि गुणवत्ता कम होने का एक कारण यह भी है कि ये सेवाएँ या तो निःशुल्क या अत्याधिक अनुदान पर उपलब्ध है | जिसके कारण कम गुणवत्ता की सेवा उपलब्ध होने पर कोई शिकायत नहीं करता तथा इससे भ्रष्टाचार को बढावा मिलता है | इन सेवाओं की मासिक प्रगति की जानकारी एकत्र करने के लिए जिम्मेदार होते है वे ही अपनी प्रगति के आंकड़े भेजते है जिन की सत्यता को जांचने की कोई व्यवस्था नहीं है | स्थानीय स्तर पर पर्यवेक्षण का अभाव होने के कारण भी प्रगति के आंकड़े की ही समीक्षा की जाती है | व्यय के प्रभाव को नहीं आँका जाता न ही मानव संस्थान सूचकांक से योजना या कार्यक्रम की प्रगति का मूल्याँकन करने की व्यवस्था है | लोगो की अपेक्षाएं एवं आवश्कताओं की पूर्ति की जानकारी केवल भौतिक एवं वित्तीय प्रगति से प्राप्त नहीं हो सकती है | शासन द्वारा दीर्ध अवधि के अध्ययन जैसे गरीबी में कमी, शिशु मृत्युदर में कमी, आयु में वृद्धि या शिक्षा के प्रतिशत में सुधार आदि आंकड़े एकत्र करती हे | लेकिन इन आंकड़ो के आधार पर शासन की दक्षता, बजट व्यय का प्रभाव आदि का मूल्यांकन कर मूलभूत सेवाओं की गुणवत्ता का आंकलन नहीं होता है | शासन पर्यवेक्षण एवं मूल्यांकन की व्यवस्था में आसानी से सुधार कर सकती है | सेवा प्रदाताओं के मूल्यांकन की सुद्रण व्यवस्था करने के लिए सेवा प्राप्तकर्ता व्यक्तियों से उनके सेवा प्राप्त करने पर उनकी राय प्राप्त की जा सकती है | आम आदमी सेवाओं के तकनीकी पक्ष पर अपनी राय नहीं दे सकते लेकिन सेवा प्राप्त करने के अपने अनुभव, सेवा की गुणवत्ता, सेवा से हुए लाभ हानि पर अपनी राय आसानी से दे सकते है | नागरिक राय के आधार पर सेवाओं की गुणवत्ता जानने की पद्धति सस्ती तथा विश्वसनीय होगी | यदि सेवा प्राप्त करने वालों की सकारात्मक राय हो तो शासन सुशासन प्रदान करने के आश्वासन पर खरा उतरा माना जावेगा लेकिन यदि राय नकारात्मक हो तो इसके उलट अवस्था होगी | सेवा प्राप्त करने वालो की राय के आधार पर सेवा प्रदाताओं को जिम्मेवार ठहराया जा सकता है तथा उपलब्ध संसाधनों के बेहतर उपयोग के लिए सेवा प्रदान करने के प्रबंधन को सुधारे जाने के लिए बाध्य किया जा सकता है | सेवा प्राप्त करने वालों की राय मुख्यरूप से ४ विन्दुओं जैसे सेवा तक पहुँच, सेवा उपयोग का स्तर , सेवा प्राप्ति की विश्वसनीयता तथा उपभोगता के संतोष का स्तर पर प्राप्त की जा सकती है | इन विन्दुओं पर प्राप्त राय के आधार पर नागरिक मूल्यांकन पत्रक तैयार किया जाकर सेवाओं की गुणवत्ता की जांच आसानी से की जा सकती है | उपभोक्ता संतुष्टि के आधार पर सेवाओं के मूल्यांकन में जनभागीदारी को जोड़ा जा सकता है | जनभागीदारी जुड़ जाने पर सेवा प्रदान करने की गुणबत्ता में सुधार लाने के लिए सेवा प्रदाताओं में सकारात्मक सोच को विकसित कर प्रशासन से जड़ता को समाप्त कर सुशासन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है | देश के अनेक राज्यों में शासकीय एवं अशासकीय संस्थाओं द्वारा सिटीजन स्कोर कार्ड तैयार कर कार्यक्रमों की सफलता का मूल्यांकन किया जा रहा है | बिना जनभागीदारी के अकेले सरकारी तंत्र के माध्यम से मूलभूत सेवाओं को प्रदान करने के स्तर को सुधारना तथा निरंतर बढाना संभव नहीं है | जनभागीदारी एवं उपभोगताओं की भागीदारी जैसे जैसे बढेगी उसी प्रकार काम काज में पारदर्शिता, कुशलता तथा उपलब्ध संसाधनों के बेहतर उपयोग का स्तर भी बढेगा | अतः इसी विपणन प्रणाली विकसित करने तथा मूल्यांकन की पद्धति में उन तत्वों को जोड़ने की आवश्यकता है जो नागरिको की भागीदारी को सुनिश्चित करें तथा यह एक पक्षीय प्रयास न होकर सहभागिता पर आधारित व्यवस्था हो |
                                                                      डा. रविन्द्र पस्तौर
पंचायतराज की प्रष्टभूमि
पंचायतीराज व्यवस्था का इतिहास उतना ही पुराना है, जितनी हमारी संस्कृति | हमारे देश के प्राचीन इतिहास का अवलोकन करने से ज्ञात होता है कि प्राचीन काल से हमारे देश के गाँवो में गाँव के प्रबुद्ध एवं बुजुर्ग व्यक्तियों को पंच चुना जाता था, वे गाँव में आने वाली समस्याओं का निराकरण करने के साथ-साथ सभी को भाई-चारे कि डोर में बांध रखते थे | उनके द्वारा किये गए निर्णय इतने अच्छे होते थे कि उन्हें "पंच परमेश्वर" कहा जाता था | अंग्रेजी शासन काल में सबसे ज्यादा कुठाराघात इसी व्यवस्था पर हुआ एवं यह व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई | स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान ही यह विचार किया जाने लगा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमरे देश कि व्यवस्था कैसी रखी जाये | हमारे सभी नेता इस बात के लिए सहमत हुए कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे देश में लोकतंत्र होगा, जनता सरकारों का चुनाव करेगी | शीर्षस्थ नेताओं में विशेषकर महात्मा गाँधी का यह विचार था कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सभी नागरिक समान होंगे, उनमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं रखा जायेगा एवं गाँव-गाँव में स्वशासन की इकाई लागू होगी एवं ग्राम स्वराज स्थापित किया जायेगा | आजादी के बाद संविधान निर्माताओं के मध्य पंचायतराज लागू करने पर सहमती नहीं बन सकी सिर्फ अनुच्छेद-४० में सुझाव दिया गया की राज्य संघीय तथा राज्य विधान मंडल स्थानीय स्तर पर पंचायतों को एसे अधिकार सौपेंगे, ताकि पंचायतों स्वशासन की इकाई के रूप में काम कर सकें | हमारे देश का संविधान लागू होने के बाद से संघीय ढांचा स्वीकार किया गया एवं ५० के दशक से ही विकास कार्य सर्कार के द्वारा प्रारंभ किये गए | ५० के दशक में ही विकास का लाभ ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँच 
सके इसके लिए विकासखंडो की स्थापना की गई एवं सभी कार्य शासन के निर्देशों एवं योजना के अनुसार प्रशासन ने प्रारंभ कर दिए, किन्तु साथ ही साथ पंचायतराज व्यवस्था लागू किये जाने के उद्देश्य से विभिन्न समितियों का गठन किया गया एवं उनके सुझावों के आधार पर पंचायतराज संस्थाओं का गठन भी किया गया, किन्तु इन पंचायतों के पास अधिकार न होने से ये मात्र नाम मात्र को ही ये काम कर सकी एवं नियंत्रण प्रशासन के हाथ में ही रहा | विकास प्रक्रिया में धीरे-धीरे विकास की समस्त जिम्मेदार सरकार ने अपने हाथ में ले ली अवं सभी कार्य प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा किये जाने लगे, परिणाम यह हुआ की शासन सुविधा देने वाले के रूप में विकसित हुआ एवं समुदाय मात्र सुविधा प्राप्त करने वाला बन गया | धीरे-धीरे यह समझ में आने लगा की चूँकि कार्ययोजना राजधानियों में विशेषज्ञों के द्वारा बनाई जा रही है एवं उनका क्रियान्वयन प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा किया जा रहा है, जिस वजह से स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों का उपयोग नहीं हो पा रहा है एवं समुदाय में उपलब्ध संरचनाओं के प्रति अपनत्व भी नहीं है | विशेषज्ञों एवं समितियों ने यह पाया कि विगत वर्षों में विकास के बहुत से उल्लेखनीय कार्य हुए किन्तु दूसरी तरफ ग्रामीण स्तर पर समुदाय कि भागीदारी न होने से समुदाय लगभग उदासीन हो गया है एवं बहुत सी समस्याएं आज भी ज्यों कि त्यों विद्धमान हैं | विचारोपरांत यह निर्णय लिया गया की विद्धमान समस्याओं का निराकरण तब ही हो सकता है, जब प्रक्रिया में समुदाय
की भागीदारी सुनिश्चित की जाये एवं उन पर विश्वास भी किया जाये | इसके लिए जरुरी है कि पंचायतराज व्यवस्था को लागू किया जाये एवं यह व्यवस्था सुचारू रूप से कार्य कर सके, इसके लिए उन्हें संविधान सम्मत शक्ति के साथ अधिकार भी दिए जाएँ ताकि वे विकास कि प्रक्रिया में अपनी योजना स्वयं बनायें एवं उसकी क्रियान्वयन प्रक्रिया पर नियंत्रण भी रख सकें | उक्त कारणों के आधार पर पंचायतराज संस्थाओं को स्थापित करने के उद्देश्य से ही वर्ष १९९३ में संविधान के ७३ वे संशोधन के साथ ही पंचायतराज संस्थाओं की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ |
                                                                     बी.के. द्विवेदी
विभागीय योजनायें - स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना
उद्देश्य:- ग्रामीण निर्धन परिवारों को स्वरोजगार के लिए धनोपार्जन परिसंपत्तिया हासिल करने में सहायता देते हुए गरीबी रेखा से ऊपर उठाना |
लक्षित समूह :- ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवार|
लाभार्थी चयन:- ग्रामसभा द्वारा चयनित गरीब परिवारों में से व्यक्तिगत लाभार्थियों के पहचान के जाएगी और बैंक के राय से उनका चयन होगा | चयनित सूची में से समूह तैयार होंगे जिन्हें प्रशिक्षण, पूजी विपणन आदि सहायता देकर स्वरोजगार के लिए विकसित किया जायेगा |
योजना का स्वरुप:- ग्रामीण निर्धन परिवारों के सदस्यों को स्वयं सहायता समूह के रूप में संगठित किया जायेगा | 
           एक परिवार से एक ही सदस्य चुना जायेगा | समूह सदस्य संख्या   पर्वतीय एवं दुर्गम क्षेत्रो में ५-२० तक तथा मैदानी क्षेत्रो में १०-२० तक होगी | विकलांग तथा सिचाई पर गठित समूह पर सदस्य संख्या ५ हो सकती है |
सहायता प्राप्त स्वरोजगारियों में से ५० प्रतिशत अनुसूचित जाति एवं जनजाति के , ४० प्रतिशत महिलाए, ०३ प्रतिशत विकलांग एवं १५ प्रतिशत अल्पसंख्यक होने चाहिए |
प्रशिक्षण:- योजनान्तर्गत समूह के हितगहियो को प्रशिक्षण हेतु एस.जी.एस.वाय. के अंतर्गत प्राप्त कुल आवंटन का १० प्रतिशत प्रशिक्षण हेतु व्यय किये जाने का प्रावधानहै| जिसमे स्व सहायता समूहों के सदस्यों अर्थात बी.पी.एल. हितग्राहियों को आधारभूत एवं कौशल उन्नयन प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है|

योजनाओं के लिए वित्तीय सहायता:- स्वरोजगारियों को व्यक्तिगत तथा समूह आधारित आर्थिक क्रिया कलाप हेतु बैंक लोन एवं अनुदान दिया जायेगा|

 
योजना की प्रक्रिया:-
               समूहों को रिवोल्विंग फंड के रूप में रू. ५००० से जमा के एक चोथाई तक अधिकतम २०००० रू.|
               योजनान्तर्गत व्यक्तिगत स्वरोजगारियों से, सामान्य जाति का होने पर परियोजना लागत का ३० प्रतिशत और अधिकतम रू. ७५०० अनुसूचित जाति जनजाति का होने पर परियोजना लागत का ५० प्रतिशत और अधिकतम रू. १०,००० देय होगा| स्वयं सहायता समूह के लिए परियोजना लागत का ५० प्रतिशत तथा अधिकतम रू. १.२५ लाख देय होगा | सिचाई संबंधी परियोजना के लिए अनुदान की कोई अधिकतम सीमा नहीं होगी|

                                                         नीलेश राय
नव निर्वाचित पंचायत पदाधिकारियों के प्रशिक्षण की कार्ययोजना एवं प्रगति
वर्ष २०१०-२०११ में महात्मा गाँधी राज्य ग्रामीण विकास संस्थान के द्वारा संपूर्ण प्रदेश में पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष एवं राष्ट्रीय ग्राम स्वराज योजना के अंतर्गत पंचायतराज निर्वाचित प्रतिनिधियों एवं शासकीय अमले के क्षमतावर्धन हेतु वृहद स्तर पर प्रशिक्षण आयोजित किया जा रहा है | यह प्रशिक्षण ५ अप्रैल से प्रारंभ हुआ है | जिला स्तर एवं जनपद स्तर के प्रतिनिधियों का प्रशिक्षण विभिन्न प्रशिक्षण संस्थानों जैसे- प्रशाशन अकादमी, वाल्मी, एम.जी.एस.आई.आर.डी., ईटीसी, एसजीआईवायएलडी, एवं पीटीसी में आयोजित किया जा रहा है | ग्राम पंचायत स्तर के निर्वाचित प्रतिनिधियों का प्रशिक्षण जनपद पंचायतो में नव-निर्मित विकासखंड स्त्रोत केन्द्रों एवं
 
ग्राम पंचायतों के क्लस्टरों में किया जा रहा है | इस योजना के अंतर्गत ४,१७,३४६ निर्वाचित प्रतिनिधियों को प्रशिक्षित किया जाना है जिसमें अप्रैल माह से अगस्त तक १,५०,३५६ निर्वाचित प्रतिनिधियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है |
शासकीय अमले की कुल संख्या २८,१४४ है जिसमें २०,९२३ प्रतिभागियों का प्रशिक्षण संपन्न हो चुका है | इस प्रकार कुल १,७१,२७९ पंचायतराज प्रतिनिधियों व शासकीय अमले को प्रशिक्षित किया है | वर्तमान में पंचो के प्रशिक्षण का कार्य प्रगति पर है जिसे नवंबर तक पूर्ण किया जाना है |
                                                                   डा. अश्विनी कुमार अम्बर
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